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वरिष्ठ पत्रकार अनिल लोढ़ा ने साझा किए अपनी सफलता के अनुभव, पढ़िये लोढ़ा जी के 46 वर्षों का सफरनामा…

जयपुर: आज मुझे पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रवेश किये 46 साल पूरे हो गये…2 जून 1976 को राजस्थान पत्रिका के कार्यालय में प्रवेश किया था और एक इंटर्न के रूप में काम शुरू किया था। आदरणीय कर्पूर चन्द जी कुलिश दो दिन पहले अजमेर आए थे…एक कवि सम्मेलन में मेरी कविता सुनी …मुझे मिलने बुलाया सर्किट हाउस… और फिर वहां से मुझे जयपुर आने को कहा…और विजय भंडारी जी के हाथों में सौंप दिया…विजय भंडारी राजस्थान पत्रिका के प्रबंध संपादक होते थे….उन्होंने मुझे आदरणीय कैलाश मिश्र जी को सौंपा और मैंने कैलाश मिश्र जी जैसे कई मनीषी, उस वक्त के नामी पत्रकारों के पास में रहकर पत्रकारिता सीखी… मैं आज उन सभी को स्मरण और नमन करता हूं…जिनकी वजह से मैंने पत्रकारिता की शुरुआत की…जिनके सानिध्य में मैंने पत्रकारिता का क ख ग सीखा….

कैलाश मिश्र के साथ साथ सौभागमल जी ..राजेश माथुर जी, दासाहब और आदरणीय श्री गोपाल जी पुरोहित ने मुझे ट्रांसलेशन से लेकर और साहित्यिक पत्रकारिता तक…पेज बनाने से लेकर प्रुफ रीडिंग तक…और ट्रांसलेशन से लेकर रिपोर्टिंग तक एक एक चीज सिखाई…यहां तक की मुझे टेली प्रिंटर चलाना भी सिखवाया…और उस दिन का दिन है औऱ आज का दिन है मैंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा… माननीय राजेंद्र बोरा जी और विश्वास कुमार जी…उस वक्त पत्रिका के नामी गिरामी रिपोर्टर होते थे…पहली रिपोर्टिंग मैंने राजेंद्र बोढा जी के साथ रविन्द्र मंच पर जाकर  की थी… तत्कालीन सूचना प्रसारण मंत्री विद्याचरण शुक्ल आए थे… और उसके बाद मैंने रमेश दाधीच जी के साथ भी काफी मुवमेंट करते हुए उनसे विश्वविद्यालय की शैक्षणिक पत्रकारिता सीखी … आज इन सभी का मैं आभार व्यक्त करना चाहता हूं…इस साढे चार दशक की लंबी यात्रा में, मैं राजस्थान पत्रिका, राष्ट्रदूत, दैनिक नवज्योति, समाचार भारती, नवभारत टाइम्स में दस साल, जनसत्ता में 3 साल और फिर दैनिक भास्कर में दस साल और फिर वहां से भास्कर टीवी में दैनिक भास्कर में रहते हुए ही प्रवेश किया और इलेक्ट्रोनिक मीडिया में ईटीवी राजस्थान का न्यूज हैड बना और इस लंबी यात्रा के बाद मैंने सुनहरा राजस्थान अखबार की शुरुआत की और अब ए-वन टीवी का संचालन कर रहा हूं…पत्रकारिता की इस लंबी यात्रा में अनेक मीठे कड़वे क्षण आए..मोड़ आए…कई परेशानियां भी आई…कई अच्छाइयां भी आई… कभी माणक अलंकरण भी मिला…और कभी लेखनी पर या मेरे विश्लेषण पर जबरदस्त सराहना मिली…जिन लोगों ने मुझे सराहा…मुझे प्रेरणा दी…मुझे हौंसला दिया…अपनी राह पर अडिग रहने का। उन सभी को मैं आज आभार व्यक्त करते हुए खासतौर पर मिलापचंद डंडिया जी को प्रणाम करता हूं जिनके मार्गदर्शन मैं मैंने पत्रकारिता के मूल्यों को समझा और उनका अनुसरण करने का प्रयास किया…आज अपने सभी पाठकों को…सभी दर्शकों को…चैनल के दर्शकों को… अपने सारे मित्रों को…सहयोगियों को और उन सैकड़ों पत्रकार साथियों को जिन्होंने मेरे साथ इन संस्थानों में काम किया…मैं स्मरण करते हुए ईश्वर से प्रार्थना करता हूं  कि मुझे इस दिशा में आगे बढ़ते रहने की निरंतर प्रेरणा प्रदान करें…बहुत बहुत सभी का आभार…इस जीवन यात्रा में जो मेरे साथ रहे…

अपनी मां को प्रणाम करना चाहता हूं और पिताजी जी को स्मरण करना चाहता हूं जिन्होंने कभी भी मेरी राह नहीं रोकी …हालांकि मैं उनके अनुकूल …उनके विचारों के अनुकूल नहीं चल पाया …उनकी कामना को पूरा नहीं कर पाया और उनके सपनों के हिसाब से नहीं चल पाया …परन्तु फिर भी उन्होंने हमेशा मेरे आगे बढ़ने की कामना की, मुझे प्रेरणा दी और मेरा हौसला बढ़ाया…

मेरे कॉलेज के जमाने की सहयोगी बीना जी का भी मैं आभारी हूं जिन्होंने मुझे आज सुबह वाट्सएप करके इस बात की याद दिलाई कि मैं पत्रकारिता के 46 वर्ष पूरे कर चुका हूं…

अंत में, मैं यह कहना चाहता हूं

जब से चला हूं मंजिल पे नजर है मेरी,

इन निगाहों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा।

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Author: nirbhiknazar

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