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हार गये हरीश रावत, पिछले कई सालों से हरदा पर आ रही है हार की आफत ! पढ़िये हरीश रावत का राजनीतिक सफर…

देहरादून: हरीश रावत उत्तराखंड में कांग्रेस के सबसे वरिष्ठ नेताओं में से हैं. लेकिन पिछले कुछ वर्षों से हार उनके पीछे ऐसे पड़ी है कि पीछा ही नहीं छोड़ रही. साल 2017 में मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने हरिद्वार ग्रामीण और किच्छा दो सीटों से चुनाव लड़ा, लेकिन दोनों पर ही उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा. इसके बाद साल 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने उन्हें नैनीताल-उधमसिंह नगर लोकसभा क्षेत्र से अपना उम्मीदवार बनाया, लेकिन यहां भी उन्हें हार ही मिली. अब 2022 के उत्तराखंड विधानसभा चुनाव मे लालकुआं विधानसभा सीटे से पूर्व सीएम हरीश रावत को बड़ी हार का सामना करना पड़ा है। उनके प्रतिद्वंदी भाजपा के मोहन सिंह बिष्ट ने उन्हें 14 हजार वोटों से हराया है।

हरीश रावत 2014-2017 में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. वह 2009 से 2011 तक केंद्र की यूपीए सरकार में श्रम और रोजगार राज्य मंत्री रहे. 2011 से 2012 तक वह कृषि एवं खाद्य प्रसंस्करण उद्योग राज्य मंत्री और संसदीय कार्य राज्य मंत्री रहे. 2012 में उन्हें प्रमोशन देकर कैबिनेट मंत्री बनाया गया और जल संसाधन विभाग की जिम्मेदारी दी गई. जनवरी 2014 तक वह इस पद पर रहे, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी संभालने के लिए केंद्रीय कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया. उत्तराखंड में अल्मोड़ा (Almora) जिले के एक छोटे से गांव मोहनरी से राज्य के मुख्यमंत्री और केंद्रीय कैबिनेट तक हरीश रावत की यह यात्रा पहाड़ों के जीवन की ही तरह काफी उतार-चढ़ाव भरी रही है. हरीश रावत ने कई राज्यों में कांग्रेस के संगठन को मजबूत करने में अहम भूमिका निभाई है।

हरीश रावत का व्यक्तिगत जीवन पढ़ाई-लिखाई

हरीश रावत का जन्म जन्म 27 अप्रैल 1948 को तत्कालीन यूपी के अल्मोड़ा जिले के मोहनरी गांव में हुआ था. उनके पिता का नाम राजेंद्र सिंह रावत और मां का नाम देवकी देवी था. वह एक कुमाऊंनी राजपूत परिवार से संबंध रखते हैं और उनका गांव अदबौड़ा-मोहनरी ग्राम सभा में आता है. शुरुआती पढ़ाई गवर्मेंट इंटर कॉलेज चौनलिया से करने के बाद हरीश रावत ने लखनऊ यूनिवर्सिटी से बीए और 1978-79 मों एलएलबी की डिग्री ली. उन्होंने अपनी साथी कांग्रेस नेता रेणुका रावत से विवाह किया. रेणुका रावत ने भी लखनऊ यूनिवर्सिटी से ही लॉ की डिग्री ली थी.

हरीश रावत का राजनीतिक सफर

हरीश रावत का राजनीतिक सफर ग्राम सभा के स्तर से शुरू हुआ, जो आगे चलकर ट्रेड यूनियन और यूथ कांग्रेस सदस्य के तौर पर आगे बढ़ा. साल 1980 में उन्हें पहली बार बड़ी सफलता हाथ लगी जब वह अल्मोड़ा लोकसभा क्षेत्र से भाजपा के बड़े नेता मुरली मनोहर जोशी को हराकर संसद पहुंचे. इसके बाद 1984 में उन्होंने और भी बड़े अंतर से मुरली मनोहर जोशी को शिकस्त दी. 1989 के लोकसभा चुनाव तक आते-आते उत्तराखंड आंदोलन भी बड़ा रूप लेने लगा था. इसी दौरान उन्होंने उत्तराखंड क्रांति दल (UKD) के बड़े नेता काशी सिंह ऐरी को हराया और लगातार तीसरी बाद लोकसभा पहुंचे. हालांकि, इस बार जीत का अंतर कम था. जैसा कि हमने कहा, उनका जीवन काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा, 1991 में उनका वोट पर्सेंटेज और कम हुआ और वह चुनाव हार गए. इसके बाद 1996, 1998 और 1999 के चुनाव में लगातार चार बार उन्हें अल्मोड़ा सीट से हार का मुंह देखना पड़ा. 2009 के लोकसभा चुनाव में उन्हें कांग्रेस ने हरिद्वार सीट से टिकट दी और इस बार उन्हें सफलता हाथ लगी और वह चौथी बार लोकसभा पहुंचे. फरवरी 2014 में उन्होंने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और 2017 तक मुख्यमंत्री पद पर रहे. इस दौरान उन्होंने जुलाई 2014 में उत्तराखंड की धारचुला सीट से उपचुनाव में जीत दर्ज की और उत्तराखंड विधानसभा के सदस्य बने. साल 2017 के उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में हरीश रावत ने हरिद्वार ग्रामीण और किच्छा दो सीटों से विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन वह दोनों सीटें हार गए. मुख्यमंत्री होते हुए दोनों सीटे हार जाना हरीश रावत के लिए बड़ा झटका था. 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने एक बार फिर अपना चुनाव क्षेत्र बदला और नैनीताल-उधमसिंह नगर सीट से चुनावी मैदान में उतरे, लेकिन एक बार फिर उन्हें हार का सामना करना पड़ा.

मुख्यमंत्री के तौर पर हरीश रावत का तीन साल का सफर बहुत उथल-पुथल भरा रहा. साल 2013 की केदारनाथ आपदा के बाद उत्तराखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा को पुनर्वास कार्यक्रम को लेकर काफी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा और आखिरकार उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. ऐसे समय में हरीश रावत ने मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी संभाली और धारचुला विधानसभा सीट से जीत दर्ज करके अपने मुख्यमंत्री के तौर पर अपनी ताजपोशी को सही साबित किया. मार्च 2016 में 9 कांग्रेस विधायकों ने सरकार से बगावत कर दी और हरीश रावत की सरकार अल्पमत में आ गई. केंद्र सरकार ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया. मई 2016 में विश्वासमत जीतने के बाद हरीश रावत मुख्यमंत्री के रूप में बहाल हुए. मुख्यमंत्री रहते हुए हरीश रावत ने 2017 में हरिद्वार और किच्छा दो सीटों से विधानसभा चुनाव लड़ा और दोनों हार गए. इस तरह मुख्यमंत्री और उत्तराखंड के विधायक के तौर पर उनके कार्यकाल का अंत हुआ.

हरीश रावत का राजनीतिक सफर चार दशक से ऊपर का है तो उनकी कहानी इतनी छोटी कैसे हो सकती है. साल 2000 में जब उत्तराखंड एक अलग राज्य के रूप में उभरा तो उन्हें सर्वसम्मति से उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष चुना गया. साल 2002 में उन्हें कांग्रेस ने उत्तराखंड कोटे से राज्यसभा सदस्य बनाया और 2008 तक वह राज्यसभा सदस्य रहे.

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Author: nirbhiknazar

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