देहरादून: कांग्रेस को 2022 के उत्तराखंड चुनाव से काफी उम्मीदें थी। पार्टी के रणनीतिकारों को लग रहा था कि जिन मुद्दों को लेकर वह जनता के बीच जा रहे हैं, उनसे चुनावी नैय्या पार जरूर होगी। मगर हुआ इसके विपरित। परिणाम निकलने पर पता चला कि कांग्रेस के खाते में भाजपा से आधे विधायक भी नहीं आए।
सत्ताधारी दल जहां 47 सीटें जीत फिर से सरकार बनाने जा रहा है। वहीं, बामुश्किल 11 से 19 तक पहुंची। पहाड़ों पर पार्टी का प्रदर्शन और खराब रहा। परिणाम आने के बाद कांग्रेस में गुटबाजी का सिलसिला चरम तक भी पहुंच गया। इसके केंद्र में पूर्व सीएम हरीश रावत, नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह, कार्यकारी अध्यक्ष रणजीत सिंह रावत और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल भी रहे।
अविनाश पांडे कर रहे हार की समीक्षा
पार्टी ने हाल में चुनावी हार की समीक्षा के लिए पूर्व में स्क्रीनिंग कमेटी के अध्यक्ष रहे अविनाश पांडे को जिम्मेदारी सौंपी है। समीक्षा में हवाई बातों की बजाय गंभीर मंथन करना होगा। संगठन को खड़ा करने के लिए बदलाव की जरूरत भी है। ऐसा खुद कार्यकर्ता मानते हैं। तभी कांग्रेस खड़ी हो पाएगी।
सत्ता से बेदखल होने के बाद से गुटबाजी
2017 में सत्ता से बेदखल होने के बाद से कांग्रेस में गुटबाजी का दौर शुरू हो गया था। अधिकांश चेहरे दो खेमों में बंटे हुए नजर आए। इस गुटबाजी को खत्म करने के लिए पिछले साल जुलाई में कांग्रेस हाईकमान ने उत्तराखंड में पंजाब फार्मूला लागू कर दिया। यानी एक अध्यक्ष और चार कार्यकारी अध्यक्ष। लेकिन पंजाब और उत्तराखंड दोनों जगहों पर यह फार्मूला चुनावी कसौटी में पास नहीं हो सका। जिस वजह से उत्तराखंड में हर पांच साल में सत्ता परिवर्तन का मिथक भी टूट गया।
कांग्रेस के स्टार प्रचारक गिनती भर
भाजपा ने मोदी के चेहरे और मजबूत जमीनी संगठन के सहारे चुनाव लड़ा। जबकि कांग्रेस के स्टार प्रचारक भी गिनती के थे। राहुल और प्रियंका गांधी के अलावा बड़े नेताओं में रणदीप सुरजेवाला ही यहां प्रचार को पहुंचे। टिकट वितरण में देरी समेत अन्य कई वजहें हैं जिनकी वजह से कांग्रेस सत्ता में वापसी नहीं कर सकी।
ये दिग्गज हार गए चुनाव
<span “=”” style=’box-sizing: border-box’>पूर्व सीएम हरीश रावत, प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल, उप नेता प्रतिपक्ष करन माहरा, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल, कार्यकारी अध्यक्ष रणजीत सिंह रावत व प्रो. जीतराम के अलावा राष्ट्रीय सचिव व सीटिंग विधायक काजी निजामुद्दीन भी अपने-अपने क्षेत्र से चुनाव हार गए।
फिलहाल पार्टी के पास सेनापति भी नहीं
<span “=”” style=’box-sizing: border-box’>वहीं, परिणाम आने के बाद बड़े नेताओं ने एक-दूसरे के खिलाफ खुलकर बयानबाजी की तो इंटरनेट मीडिया समर्थकों ने भी खूब भड़ास निकाली। फिलहाल पार्टी के पास सेनापति भी नहीं है। क्योंकि, प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल का इस्तीफा हो चुका है। ऐसे में पार्टी को तमाम चुनौतियों से पार पाना होगा।