नई दिल्ली: पंजाब कांग्रेस के बड़े नेताओं में शामिल नवजोत सिद्धू यूं तो अक्सर विवादों में घिरे रहते हैं, लेकिन अब वे एक ऐसे विवाद में जेल काटेंगे जो 34 साल पहले हुआ था। दरअसल पटियाला में 27 दिसंबर 1988 की दोपहर नवजोत सिद्धू और गुरनाम सिंह (65) के बीच रोड रेज में मामूली सी बहस हुई थी। गुरनाम के परिजनों का आरोप है कि सिद्धू ने गुरनाम के सिर पर बाईं ओर मुक्का मारा। इससे गुरनाम को ब्रेन हैमरेज हो गया और उनकी मौत हो गई। उनके वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट में भी यही दलील दी थी कि गुरनाम सिंह की मौत सिद्धू द्वारा सिर पर मारी गई चोट से हुई है। इसलिए यह साफ तौर पर कत्ल का केस है, क्योंकि यह चोट गलती से नहीं पहुंचाई जा सकती।
ट्रायल कोर्ट ने किया था बरी, हाईकोर्ट ने बदल दिया था फैसला
इस मामले में पटियाला के ट्रायल कोर्ट ने तो नवजोत सिद्धू को बरी कर दिया था। इसके बाद गुरनाम सिंह के परिजनों ने पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट में शरण ली। हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को बदल दिया। हाईकोर्ट ने कहा था कि गुरनाम सिंह की मौत कार्डियक फेल्योर (ह्दय घात) से नहीं, बल्कि सिर पर चोट लगने की वजह से हुई थी। इस मामले में गठित डॉक्टरों के बोर्ड ने मौत का कारण सिर में चोट और कार्डियक कंडीशंस बताया था। इसके बाद हाईकोर्ट ने सिद्धू और उनके साथी रुपिंदर संधू को दोषी करार दिया था। हालांकि हाईकोर्ट ने कहा था कि यह सोचा-समझा कत्ल नहीं, बल्कि मौके पर आवेग का नतीजा था।
एक चैनल शो में मारने की बात स्वीकारी
हालांकि बाद में सुप्रीम कोर्ट ने सिद्धू की सजा पर रोक लगाते हुए उन्हें चुनाव लड़ने की इजाजत दी थी। फिर इस मामले में एक और मोड़ आया जब गुरनाम सिंह के परिजनों ने 2010 में एक चैनल के शो में सिद्धू द्वारा गुरनाम को मारने की बात स्वीकार करने की सीडी सुप्रीम कोर्ट में दाखिल कर दी। इसके बाद शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में सिद्धू को एक हजार रुपये का जुर्माना लगा कर छोड़ दिया था। परिजनों ने पुनर्विचार याचिका दायर की, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को सिद्धू को एक साल सश्रम कारावास की सजा सुनाई।