Nirbhik Nazar

उत्तराखंड मे भी विश्वकर्मा दिवस की धूम, बिहारी महासभा ने भी आयोजित किया प्रोग्राम…

देहरादून: आज पूरे देश में विश्वकर्मा पूजा का उल्लास है। हर वर्ष कन्या संक्रांति के दिन या 17 सितंबर को विश्वकर्मा पूजा मनाया जाता है। इस दिन देव शिल्पी विश्वकर्मा जी की पूजा विधि विधान से करते हैं। इसी क्रम मे आज हर वर्ष की भांति बिहारी महासभा सांकेतिक रूप से देहरादून मे विश्वकर्मा पूजा का आयोजन किया गया। पूजा का आयोजन हिंदू नेशनल स्कूल के प्रांगण में किया गया। बिहारी महासभा के द्वारा विश्वकर्मा दिवस का कार्यक्रम लंबे समय से मनाया जा रहा है इस वर्ष भी विश्वकर्मा की मिट्टी की मूर्ति बनाकर पूजा की व्यवस्था की गई , सुबह मिट्टी की मूर्ति बनाकर विध्वंस किस्सा पूजा कराई गई मंत्र उच्चारण से पूरा इलाका भक्तिमय हो गया धूप दीप तांबूल से विधिवत पूजा किया गया क्षेत्रीय बिहारी महासभा के सदस्यों ने अपने काम करने वाला औजार करनी वसूली गई थी कुदाल और लोहे के औजार एकत्रित किए और उन सभी औजारों की भी पूजा की।

इस अवसर पर बिहारी महासभा के अध्यक्ष ललन सिंह ने  कहा कि जैसे कोई शिल्पकार किसी मूर्ति का निर्माण करता है, ठीक ऐसे ही हम अपने जीवन में भी श्रेष्ठ गुणों एंव संस्कारों की रचना कर, इसे मूल्यवान बनायें। जिस प्रकार मकान जब पुराना हो जाता है, तो फिर से नया मकान बनाते है, ठीक उसी तरह इस जीवन यात्रा में बहुत समय होने के कारण हमारे मौलिक गुण भी लुप्त हो जाते हैं।  हमें चाहिए की कि जीवन की रचनात्मकता को फिर से संवारा जाये, और इस विश्व को पुन: विश्व बन्धुत्व के सूत्र में पिरोया जाये।

बिहारी महासभा के सचिव चंदन कुमार झा ने कहा कि परमात्मा ने जब नये विश्व की रचना की, तो उन्होंने सबसे पहले ब्रह्मा को रचा और फिर ब्रह्मा के द्वारा सारे विश्व को रचा, उसी यादगार में हम विश्वकर्मा पूजा करते है, ब्रह्मा का ही एक नाम विश्वकर्मा भी है।

बिहारी महासभा के कोषाध्यक्ष रितेश कुमार ने कहा की हमे चाहिए की हम आज के दिन ये संकल्प लें की अपनी जिंदगी को अच्छे उद्देश्यों के लिए जिये और हमेशा दूसरों की मदद करें। वहीं मंडल अध्यक्ष विनय कुमार यादव  ने भी इस अवसर पर कहा की हमे हमेशा दूसरों के बारे मे सोचना चाहिए इसके अलावा हमे अच्छे विचार के साथ जीवन जीना चाइए और सामाजिक स्तर पर दूसरों की मदद करनी चाहिए।

भगवान विश्वकर्मा की जन्म कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, सृष्टि के प्रारंभ में भगवान विष्णु प्रकट हुए थे, तो वह क्षीर सागर में शेषशय्या पर विराजमान थे। उनकी नाभि से कमल निकला, जिस पर ब्रह्मा जी प्रकट हुए, वे चार मुख वाले थे। उनके पुत्र वास्तुदेव थे, जिनकी पत्नी अंगिरसी थीं। इन्हीं के पुत्र ऋषि विश्वकर्मा थे। विश्वकर्मा जी वास्तुदेव के समान ही वास्तुकला के विद्वान थे। उनको द्वारिकानगरी, इंद्रपुरी, इंद्रप्रस्थ, हस्तिनापुर, सुदामापुरी, स्वर्गलोक, लंकानगरी, शिव का त्रिशूल, पुष्पक विमान, यमराज का कालदंड, विष्णुचक्र समेत कई राजमहल के निर्माण का कार्य मिला था।

क्यों मनाते हैं विश्वकर्मा पूजा:

मान्यताओं के अनुसार कन्या संक्रांति पर भगवान विश्वकर्मा का जन्म हुआ था। शास्त्रों में ऐसी मान्यता है कि विश्वकर्मा जयंती पर भगवान विश्वकर्मा की पूजा करने से कारोबार में वृद्धि होती है। धन-धान्य और सुख-समृद्धि के लिए भगवान विश्वकर्मा की पूजा करना आवश्यक और मंगलदायी है। इस दिन उद्योगों, फैक्ट्रियों और मशीनों की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन विश्वकर्मा पूजा करने से खूब तरक्की होती है और कारोबार में मुनाफा होता है। यह पूजा विशेष तौर पर सभी कलाकारों, बुनकर, शिल्पकारों और औद्योगिक क्षेत्रों से जुड़े लोगों द्वारा की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि प्राचीन काल की सभी राजधानियों का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने ही किया था। स्वर्ग लोक, सोने की लंका, द्वारिका और हस्तिनापुर भी विश्वकर्मा द्वारा ही रचित हैं।

बिहारी महासभा के विश्वकर्मा पूजा कार्यक्रम में बिहारी महासभा के अध्यक्ष ललन सिंह सचिव चंदन कुमार झा कोषाध्यक्ष रितेश कुमार पूर्व अध्यक्ष संजय सिंह गोविंदगढ़ मंडल अध्यक्ष विनय कुमार मंडल सचिव गणेश साहनी कोषाध्यक्ष विजयपाल भगवान के साथ  अमरेंद्र कुमार, आलोक सिन्हा, रघु, सुरेश ठाकुर, कमलेश कुमार ,धर्मेंद्र ठाकुर ,राजेश कुमार ,शशिकांत गिरी , डी के सुरेंद्र अग्रवाल ार्यकारिणी सदस्य आलोक सिन्हा, एस के सिंहा,सहित सैकड़ों बिहारी महासभा के कार्यकर्ता मौजूद रहे।

nirbhiknazar
Author: nirbhiknazar

Live Cricket Score
Astro

Our Visitor

0 6 9 7 0 9
Users Today : 16
Users Last 30 days : 701
Total Users : 69709

Live News

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *