देहरादून: स्कूली शिक्षा के बाद अब उच्च शिक्षा विभाग में भी राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 लागू कर दी गई है। रविवार को मुख्यमंत्री आवास में आयोजित कार्यक्रम में केंद्रीय उच्च शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने इसका विधिवत शुभारंभ किया। कार्यक्रम में उच्च शिक्षा विभाग के शैक्षिक सत्र 2022-23 से राष्ट्रीय शिक्षा नीति का शुभारंभ करते हुए केंद्रीय मंत्री प्रधान ने कहा कि उत्तराखंड ने सबसे पहले स्कूली शिक्षा में राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2022 को लागू किया गया।
2025 तक 40 लाख लाख को पढ़ाने की क्षमता का लक्ष्य
अब उच्च शिक्षा विभाग ने भी इस पर अमल कर एक और अहम कदम उठा दिया है। उन्होंने कहा कि अभी उत्तराखंड में प्राइमरी से लेकर उच्च शिक्षा तक हर स्तर पर 35 लाख छात्रों को पढ़ाने की क्षमता है, इसे 2025 तक 40 लाख किए जाने की जरूरत है। इसी तरह स्कूली शिक्षा में भी अगले साल तक तीन वर्ष की आयु पूरी करने वाले हर बच्चे को बाल वाटिका में प्रवेश दिए जाने का प्रयास किया जाना है।
इस साल प्रवेश भी नई नीति के तहत-धामी
इस मौके पर सीएम पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में सांस्कृतिक आत्मसम्मान के साथ आत्मनिर्भर युवाओं पर जोर दिया गया है। इसमें मातृभाषाओं में पढ़ाई पर फोकस किया गया है, मेडिकल की पढ़ाई तक हिंदी में कराई जा रही है। उत्तराखंड में इसे हर स्तर पर लागू किया जाएगा। उच्च शिक्षा मंत्री ने बताया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति इसी सत्र से सभी विश्वविद्यालयों में लागू हो रही है। इस साल के प्रवेश भी नई नीति के प्रावधानों के तहत किए गए हैं।
देश,समाज का विकास बेहतर शिक्षा से ही संभव-प्रधान
केंद्रीय शिक्षा और कौशल विकास मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि उत्तराखंड हमेशा से पठन-पाठन और मनन करने वालों की धरती रही है। ऐसे में यहां के युवाओं को अब खुद को दुनिया से मुकाबले के लिए तैयार करना होगा। सीएम आवास में रविवार को राष्ट्रीय शिक्षा नीति के शुभारंभ के मौके पर प्रधान ने कहा कि किसी भी देश-समाज का विकास, बेहतर शिक्षा से ही संभव है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 इन सभी पहलुओं को ध्यान में रखकर बनाई गई है। शिक्षा के साथ ही बच्चों के कौशल, व्यक्तित्व, भाषाई विकास और नैतिक मूल्यों पर विशेष ध्यान दिया गया है। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत बच्चों को तीन साल से फार्मल एजुकेशन से जोड़ा जा रहा है। इसके तहत बाल वाटिका शुरू की गई है। तीन साल बाल वाटिका में सीखने के बाद बच्चा छह साल की उम्र में पहली कक्षा में प्रवेश करेगा।
उन्होंने कहा कि वेद, उपनिषद, पुराण लिखने वालों ने उत्तराखंड से ही चिंतन-मनन किया। उत्तराखंड के लोगों में पढ़ना व मेहनत करने का स्वाभाविक गुण है, इसलिए यहां के युवाओं को विश्व की आवश्यकता के लिए तैयार किया जाना चाहिए। उन्होंने मातृ भाषा में पढ़ाई पर जोर देते हुए कहा कि विश्व की कोई भी अर्थव्यवस्था अंग्रेजी भाषा आधारित नहीं है।