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गुजरात, हिमाचल और उत्तराखंड के बाद अब UP में यूनिफॉर्म सिविल कोड की तैयारी! जानिए क्या है समान नागरिक कानून और रीति-रिवाजों पर कितना होगा असर?

लखनऊ/देहारादून/अहमदाबाद: गुजरात और हिमाचल प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले एक बार फिर यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) की चर्चा एक बार फिर से शुरू हो गई है. बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी के बयान से ऐसा लगता है कि अब यूपी में यूनिफॉर्म सिविल कोड की तैयारी है. उतर प्रदेश के बरेली में उन्होंने एक कार्यक्रम के दौरान मीडिया से बात करते हुए कहा कि सबकी अपेक्षा है कि सरकार इसे पूरा करें बाकी निर्णय उनको ही लेना है.

हालांकि इसका विरोध भी शुरू हो गया है. दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने इसकी खिलाफत की है. वहीं सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव पहले ही यूसीसी का विरोध कर चुके हैं. मुस्लिम संगठन भी इसके खिलाफ खड़े हो गए हैं.

बरेली पहुंचे प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी

दरअसल गुजरात और हिमाचल में होने वाले विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने अपना दांव चल दिया है. दोनों राज्यों में चुनाव से पहले यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने की कवायद शुरू कर दी है. वहीं इस बीच विशाल चित्रांश समागम कायस्थ वैवाहिक परिचय सम्मेलन में पहुंचे थे.

सब चाहते हैं यूपी में लागू हो यूसीसी !

भाजपा प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी से जब पत्रकारों ने सवाल किया कि क्या उत्तर प्रदेश में भी यूसीसी लागू किया जाएगा तो उन्होंने अपने जबाब में कहा कि लंबे समय से हमारी पार्टी यूनिफॉर्म सिविल कोड की बात करती रही है, ये खुशी की बात है कि बीजेपी शासित राज्यों में इस कानून को लाया जा रहा है. उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में सबकी अपेक्षा है कि सरकार इसे पूरा करें, हालांकि निर्णय उनको ही लेना है.

क्या है समान नागरिक कानून

जैसा कि नाम से ही पता चल रहा है कि समान नागरिक कानून का मतलब है कि सबके लिए एक नियम. लेकिन भारत जैसे विविधता वाले देश में इसको लागू करना क्या इतना आसान है जहां सभी को अपने-अपने धर्मों के हिसाब से रहने की आजादी है.

समान नागरिक कानून के मुताबिक पूरे देश के लिये एक समान कानून के साथ ही सभी धार्मिक समुदायों के लिये विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने के नियम एक होंगे.

संविधान के अनुच्छेद 44 में भारत में रहने वाले सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून का प्रावधान लागू करने की बात कही गई है.  अनुच्छेद-44 संविधान के नीति निर्देशक तत्वों में शामिल है. इस अनुच्छेद का उद्देश्य संविधान की प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य’ के सिद्धांत का पालन करना है.

समान नागरिक कानून का पहला जिक्र कब हुआ

ऐसा नहीं है कि कॉमन सिविल कोड यानी समान नागरिक कानून की बात आजादी के बाद की अवधारणा है. इतिहास में खंगालने पर इसका जिक्र 1835 में ब्रिटिश सरकार की एक रिपोर्ट में मिलता है. जिसमें कहा गया है कि अपराधों, सबूतों और कॉन्ट्रेक्ट जैसे मुद्दों पर समान कानून लागू करने की जरूरत है.

इसके साथ ही इस रिपोर्ट में हिंदू-मुसलमानों के धार्मिक कानूनों से छेड़छाड़ की बात नहीं की गई है. लेकिन साल 1941 में हिंदू कानून पर संहिता बनाने के लिए बीएन राव की समिति भी बनाई गई.

इसी समिति की सिफारिश पर साल 1956 में हिंदुओं, बौद्धों, जैनियों और सिखों के उत्तराधिकार मामलों को सुलझाने के लिए हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम विधेयक को अपनाया गया. लेकिन इस  मुस्लिम, इसाई और पारसी लोगों के लिये अलग-अलग व्यक्तिगत कानून थे.

अदालतों में समय-समय पर उठी मांग

सभी के लिए एक समान कानून बनाने की मांग कई मामलों की सुनवाई के दौरान अदालतों में भी उठती रही है. इनमें 1985 का शाह बानो का ट्रिपल तलाक का मामला, 1995 का सरला मुद्गल का मामला है जो कि बहुविवाह से जुड़ा था.

भारत में अभी क्या समान नागरिक कानून की स्थिति

भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872, नागरिक प्रक्रिया संहिता, संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882, भागीदारी अधिनियम, 1932, साक्ष्य अधिनियम, 1872 जैसे मामलो में सभी नागरिकों के लिए एक समान नियम लागू हैं. लेकिन धार्मिक मामलों में सबके लिए अलग-अलग कानून लागू हैं और इनमें बहुत विविधता भी है. देश में सिर्फ गोवा एक ऐसा राज्य जहां पर समान नागरिक कानून लागू है.

समान नागरिक कानून लागू करने की चुनौतियां

‘कोस कोस पर बदले पानी, चार कोस पर वाणी’…ये लाइनें भारत के विविधता से भरे समाज को दर्शाती हैं. सिर्फ समाज ही नहीं, घर-घर में भी अलग-अलग रीति रिवाज हैं. भारत में हिंदुओं की आबादी सबसे ज्यादा है. लेकिन हर राज्य में अलग धार्मिक मान्यताएं और रिवाज हैं. उत्तर भारत के हिंदुओं के रीति-रिवाज दक्षिण भारत के हिंदुओं से बहुत अलग हैं. संविधान में नगालैंड, मेघालय और मिज़ोरम के स्थानीय रीति-रिवाजों को मान्यता और  सुरक्षा की बात है.

इसी तरह मुसलमानों के पर्सनल लॉ बोर्ड के भी समुदाय के लिए अलग-अलग नियम हैं. ईसाइयों के भी अपने अलग धार्मिक कानून हैं. इसके अलावा किसी समुदाय में पुरुषों को कई शादी करने की इजाज़त है. किसी जगह पर विवाहित महिलाओं को पिता की संपत्ति में हिस्सा न देने का नियम है. समान नागरिक कानून लागू होने के बाद ये सभी नियम खत्म हो जाएंगे.

समान नागरिक के कानून के खिलाफ तर्क

एक बड़ा समान नागरिक कानून के खिलाफ है. कई राजनीतिज्ञों का मानना है कि ये इसके पीछे सांप्रदायिकता है. कुछ लोग तो और आगे जाकर इसे बहुसंख्यकवाद करार देते हैं.

संविधान के अनुच्छेद 25 में क्या लिखा है?

इस अनुच्छेद में कहा गया है कि कोई भी अपने हिसाब धर्म मानने और उसके प्रचार की स्वतंत्रता की रखता है.

समान नागरिक संहिता पर प्रमुख पार्टियों का रुख

o  साल 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने अपने घोषणा पत्र में समान नागरिक कानून बनाने का वादा किया था..

o अगस्त 2019 में शिवसेना नेता संजय राउत ने कहा था कि एनडीए में शिवसेना ने जो मुद्दे उठाए थे, उन्हें मोदी सरकार आगे बढ़ा रही है. इस पर ज्यादा बहस की जरूरत नहीं, यह देश हित का निर्णय है.

o अक्टूबर 2016 में असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि समान नागरिक संहिता केवल मुस्लिमों से जुड़ा मुद्दा नहीं है. बल्कि पूर्वोत्तर के कुछ इलाकों के लोग भी इसका विरोध करेंगे. भारत के बहुलतावाद और विविधता को बीजेपी खत्म कर देना चाहती है.

समान नागरिक संहिता पर सुप्रीम कोर्ट ने अब तक क्या कहा

o  साल 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि देश में अलग-अलग पर्सनल लॉ की वजह से उहापोह या भ्रम के हालात बने रहते हैं. सरकार अगर चाहे तो एक कानून बनकर ऐसी परिस्थितियां खत्म कर सकती है. क्या सरकार ऐसा करेगी? अगर आप ऐसा करना चाहते हैं तो आपको ये कर देना चाहिए?

o  साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारत में अब तक समान नागरिक कानून लागू करने का कोई प्रयास नहीं किया गया है. जबकि संविधान निर्माताओं ने अनुच्छेद 44 में नीति निदेशक तत्व के तहत उम्मीद जताई थी कि भविष्य में ऐसा किया जाएगा.

o  साल 2021 में दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि देश में यूनिफार्म सिविल कोड लागू होना चाहिए. जस्टिस प्रतिभा एम. सिंह ने एक केस की सुनवाई के दौरान कहा कि अब भारत धर्म, जाति, समुदाय से ऊपर उठ चुका है. आधुनिक हिंदुस्तान में धर्म-जाति की बाधाएं भी खत्म हो रही हैं. इस बदलाव की वजह से शादी और तलाक में दिक्कत भी आ रही है. आज की युवा पीढ़ी इन दिक्कतों से जूझे यह सही नहीं है. इसलिए देश में समान नागरिक कानून लागू होना चाहिए.

समान नागरिक संहिता और भारत के राज्य

o  इसी साल मार्च में उत्तराखंड के सीएम पुष्कर सिंह धामी ने सरकार गठन के बाद पहली कैबिनेट मीटिंग में उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए एक कमेटी का गठन किया है.

o  अप्रैल 2022 में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे ने मांग की है कि पीएम  मोदी को पूरे देश में समान नागरिक कानून लागू करना चाहिए.

o  इसी साल अप्रैल में शिवपाल यादव ने कहा कि देश में समान नागरिक कानून लागू करने का सही समय आ गया है.

o   22 अप्रैल  2022 को गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि सीएए, राममंदिर, अनुच्छेद 370 और ट्रिपल तलाक के बाद अब बारी समान नागरिक कानून की है.

गोवा में समान नागरिक कानून में क्या है

o              गोवा में साल 1965 से ही समान नागरिक कानून लागू है.

o              उत्तराधिकार, दहेज और विवाह के सम्बंध में हिन्दू, मुस्लिम और क्रिश्चियन के लिए एक ही कानून है.

o              कोई भी माता-पिता अपने बच्चों को पूरी तरह अपनी संपत्ति से वंचित नहीं कर सकते हैं.

o              यदि कोई मुस्लिम अपनी शादी का पंजीकरण गोवा में करवाता है तो उसे बहुविवाह की अनुमति नहीं होगी.

o              गोवा में जन्मा कोई भी शख्स बहुविवाह नहीं कर सकता है.

समान नागरिक कानून और धार्मिक मान्यताएं

समान नागरिक कानून को कई कट्टरपंथी धर्म पर हमला बताते हैं. हालांकि ऐसा बिलकुल नहीं है कि इस कानून के लागू हो जाने के बाद शादी-विवाह से जुड़े धार्मिक रीति-रिवाज पंडित या मौलवी नहीं करा पाएंगे.

किसी भी नागरिक के खान-पान, पूजा-इबादत और वेशभूषा पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा.

समान नागरिक कानून पर विधि आयोग की राय

साल 2018 में इस मुद्दे पर बनाए गए एक विधि आयोग ने कहा है कि अभी समान नागरिक संहिता लाना मुमकिन नहीं है। इसकी बजाय मौजूदा पर्सनल लॉ में सुधार किया जाए. आयोग की ओर से कहा गया है कि मौलिक अधिकारों और धार्मिक स्वतंत्रता में संतुलन बनाए रखने की जरूरत है.

सभी समुदायों के लिए एक नियम बनाए जाने से पहले समाज में स्त्री-पुरुष के अधिकारों में समानता लाने पर काम किया जाए.

पर्सनल लॉ बोर्ड क्यों करता है विरोध

समान नागरिक कानून का मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड विरोध करता रहा है. उसका मानना है कि ये मुसलमानों पर हिंदू धर्म थोपने जैसा है. अगर इसे लागू कर दिया जाए तो ये उसके अधिकारों को छीनने के बराबर होगा. मुसलमानों को तीन शादियां करने का अधिकार नहीं रहेगा. पत्नी को तलाक देने के लिए कानून का पालन करना होगा. शरीयत के हिसाब से जायदाद का बंटवारा नहीं होगा.

 

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Author: nirbhiknazar

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