देहरादून: उत्तराखंड के शहरों की आबोहवा में प्रदूषण का जहर घुल रहा है. इसका असर लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ना लाजिमी है. बढ़ती मौसमी बीमारियां जिसकी वजह मानी जा रही हैं. वहीं स्वच्छ वातावरण के लिए जाना जाने वाले देहरादून में प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ रहा है, जो चिंता का सबब बनता जा रहा है.
बढ़ता प्रदूषण का स्तर
उत्तराखंड राज्य के मैदानी जिलों में जहां एक ओर कोहरा अपना सितम ढा रहा है वहीं, दूसरी ओर राजधानी देहरादून में भी वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ने लगा है. वर्तमान स्थिति यह है कि एयर क्वालिटी इंडेक्स 250 के पार पहुंच गया है. यानी देहरादून की आबोहवा खराब स्थिति में पहुंच गई है. लिहाजा स्वास्थ्य संबंधी बीमारियों से जूझ रहे मरीजों को तमाम सावधानियां बरतने की जरूरत है. हालांकि, ठंड के मौसम में स्वास्थ्य संबंधी बीमारियों के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ने लगती है तो वहीं, देहरादून में बढ़ रहे वायु प्रदूषण का स्तर भी स्वास्थ्य संबंधी मरीजों के लिए घातक साबित हो सकता है. उत्तराखंड में वायु प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ता जा रहा है और ऐसे में बढ़ते वायु प्रदूषण से चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं. वैसे वायु प्रदूषण से होने वाली समस्याएं कोई आम समस्या नहीं है.
लगातार बढ़ रही बीमारियां
शासन प्रशासन स्तर पर वायु प्रदूषण से निजात पाने के लिए समय-समय पर जागरूक किया जाता है. लेकिन बढ़ती जनसंख्या और शहर में बढ़ते वाहनों की संख्या को लेकर एक चुनौती जरूर खड़ी हो गई है. हालांकि, लगातार बढ़ रहे वायु प्रदूषण के सोर्स का पता लगाने को लेकर बीएचयू की टीम देहरादून में समेत कई शहरों में स्टडी कर रही है. एयर क्वालिटी इंडेक्स में देहरादून खराब स्थिति में है, क्योंकि देहरादून में एयर क्वालिटी इंडेक्स 250 तक पहुंच गया है. इस स्तर के तक एक्यूआई के पहुंचने पर सांस की बीमारी व त्वचा रोगों का खतरा बढ़ जाता है. ऐसे में सांस संबंधी बीमारियों से ग्रसित मरीजों को विशेष ध्यान देने की जरूरत है. ठंड के मौसम में सांस संबंधी बीमारियों से ग्रसित मरीजों की दिक्कतें वैसे ही काफी अधिक बढ़ जाती हैं. लेकिन अब जब वायु प्रदूषण भी खराब स्तर पर पहुंच गया है तो लिहाजा इस तरह के मरीजों को विशेष ध्यान देने की जरूरत है. हालांकि, वर्तमान समय में देहरादून मेडिकल कॉलेज में भी सांस संबंधी मरीजों की संख्या में काफी बढ़ोत्तरी देखी जा रही है.
जानिए वायु की गुणवत्ता
दरअसल, एयर क्वालिटी इंडेक्स, वायु की गुणवत्ता को मापने का मानक है. इसके अनुसार हवा की क्वालिटी को मापा जाता है. एयर क्वालिटी इंडेक्स लेवल को कई भागों में मात्रा के हिसाब से बांटा गया है. जिसके तहत, 0 से 50 एक्यूआई वायु की सबसे बेहतर गुणवत्ता होती है. 51 से 100 एक्यूआई संतोषजनक होता है. 101 से 200 एक्यूआई को माध्यम श्रेणी में रखा गया है. मध्यम श्रेणी में एयर क्वालिटी होने पर फेफड़ा, दिल और अस्थमा मरीजों को सांस लेने में थोड़ी दिक्कत हो सकती है. 201 से 300 एक्यूआई को खराब साथ ही 301 से 400 एक्यूआई को बहुत खराब श्रेणी में रखा गया है. एक्यूआई का स्तर खराब और बहुत खराब होने पर सांस की बीमारी का खतरा, त्वचा रोगों का खतरा बढ़ जाता है. इसी तरह 401 से 500 एक्यूआई को गंभीर माना जाता है.
क्या कह रहे जिम्मेदार
क्षेत्रीय पॉल्यूशन अधिकारी राजेंद्र के छेत्री ने बताया कि उत्तराखंड के कई शहर प्रदूषण के खतरनाक इंडेक्स को पार कर चुके हैं. खासकर उत्तराखंड के देहरादून और ऋषिकेश में इन दिनों यह अकड़ा 250 के पार पहुंचा चुका है. हालांकि, राज्य सरकार की ओर से क्लीन एयर प्रोजेक्ट चलाया जा रहा है. जिसके तहत देहरादून और ऋषिकेश की वायु गुणवत्ता को सुधारने का प्रयास किया जा रहा है. साथ ही कहा कि वायु गुणवत्ता को मापने के लिए देहरादून और ऋषिकेश में तीन तीन मैनुअल और एक एक ऑटोमेटिक स्टेशन लगाए गए हैं. हालांकि, राजेंद्र छेत्री के अनुसार यह एक चुनौती तो है? क्योंकि सर्दियों में घने कोहरे के चलते प्रदूषण का स्तर ज्यादा बढ़ जाता है जिससे एक गंभीर समस्या उत्पन्न हो जाती है.
बीमारियों से ऐसे करें बचाव
दून अस्पताल के फिजिशियन कुमार जी कौल ने कहा कि बढ़ते प्रदूषण के चलते मरीजों को सांस लेने में ज्यादा दिक्कत आती है. सर्दियों के मौसम में अस्थमा के मरीजों की संख्या काफी अधिक बढ़ जाती है और खासकर यह समस्या बुजुर्गों में देखी गई. हालांकि, बच्चों में भी यह समस्या होती है लेकिन कम होती है. साथ ही एहतियात के तौर पर डॉक्टर कुमार जी कौल ने कहा कि इम्यूनिटी बूस्ट के लिए अच्छे खानपान की जरूरत है. ज्यादा तली हुई चीजों से बचें, ताकि बढ़ते प्रदूषण के खतरे से जो बीमारियां पैदा होती हैं, उसको कम किया जा सके. साथ ही कहा कि जिस तरह से वायु प्रदूषण फैल रहा है, ऐसे में श्वास संबंधी बीमारियों से ग्रसित मरीजों को तमाम एहतियात बरतने की जरूरत है.