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तीन नए विधेयकों के प्रकाशन का निर्देश, बदल जाएंगी CRPC और IPC की धाराएं

नई दिल्ली : उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने शनिवार को ‘भारतीय न्याय संहिता, 2023’ पर 246वीं रिपोर्ट, ‘भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023’ पर 247वीं रिपोर्ट और ‘भारतीय सुरक्षा विधेयक’ पर 248वीं रिपोर्ट के प्रसार और प्रकाशन का निर्देश दिया।

रिपोर्ट शुक्रवार को राज्यसभा सांसद और गृह मामलों पर विभाग-संबंधित संसदीय स्थायी समिति के अध्यक्ष बृज लाल की ओर से पेश की गईं। इन्हें बृज लाल ने 10 नवंबर, 2023 को प्रस्तुत किया गया था।

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023, भारतीय न्याय संहिता 2023 और भारतीय साक्ष्य विधेयक 2023 को 11 अगस्त को संसद के निचले सदन में पेश किया गया था। ये क्रमश: विधेयक भारतीय दंड संहिता (IPC) 1860, आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CRPC), 1973 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 को रिप्लेस करेंगे। बिल गृह मंत्री अमित शाह ने पेश किए थे। इन्हें पेश करते हुए उन्होंने कहा कि तीन नए कानूनों का उद्देश्य संविधान द्वारा दिए गए सभी अधिकारों की रक्षा करना है।

उन्होंने कहा, “दरअसल, ब्रिटिश काल में कानून ब्रिटिश शासन को मजबूत और उसकी ही रक्षा करने के लिए बनाए गए थे। अंग्रेजों के इन कानूनों का उनका उद्देश्य न्याय नहीं, बल्कि दंड देना था।” गृह मंत्री के अनुसार, “हम इन मूलभूत पहलुओं में बदलाव लाने जा रहे हैं। इसका उद्देश्य किसी को दंडित करना नहीं बल्कि न्याय देना होगा।” इसका उद्देश्य अपराध को रोकने की भावना पैदा करना है। हालांकि जहां आवश्यक होगा, वहां सजा दी जाएगी।”

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता विधेयक में 533 धाराएं होंगी

अमित शाह के अनुसार, सीआरपीसी की जगह लेने वाले भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता विधेयक में 533 धाराएं होंगी। इस विधेयक में “कुल 160 धाराएं बदली गई हैं। इसमें 9 नई धाराएं जोड़ी गई हैं जबकि इतनी ही धाराएं निरस्त की गई हैं।”

आईपीसी की जगह लेने वाले भारतीय न्याय संहिता विधेयक में पहले की 511 धाराओं के बजाय 356 धाराएं होंगी। जबकि 175 धाराओं में संशोधन किया गया है, 8 नई धाराएं जोड़ी गई हैं। साथ ही 22 धाराएं निरस्त की गई हैं।

वहीं बात की जाए साक्ष्य अधिनियम की तो इसकी जगह लेने वाले भारतीय साक्ष्य विधेयक में अब पहले के 167 के बजाय 170 खंड होंगे। इसमें 23 खंड बदले गए हैं। वहीं, एक नया खंड जोड़ा गया है, जबकि पांच निरस्त किए गए हैं।

आईपीसी और सीआरपीसी में अंतर

आईपीसी में अपराध की परिभाषा शामिल की जाती है, इससे दंड देने के प्रावधान का पता चलता है, जबकि सीआरपीसी आपराधिक मामले के लिए की जाने वाली प्रक्रियाओं के बारे में बताती है। मसलन, अपराधी को कैसे गिरफ़्तार किया जा सकता है। आईपीसी की कई धाराएं नए विधेयक में नहीं होंगी। जबकि कई को बदला जाएगा। उदाहरण के तौर पर मर्डर के लिए लगने वाली 302 धारा को 101 से रिप्लेस किया जाएगा। वहीं मॉब लिंचिंग और सामूहिक दुष्कर्म में फांसी की सजा का प्रावधान होगा।

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Author: nirbhiknazar

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