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उत्तराखंड के इन तीन गांवों में नहीं खेली जाती होली, अबीर-गुलाल उड़ा तो हो जाती है अनहोनी, जानिय वजह

रुद्रप्रयाग: जहां एक ओर पूरा देश होली के जश्न में डूबा हुआ है, वहीं रुद्रप्रयाग जिले के तीन गांव ऐसे हैं, जहां वर्षो से होली नहीं मनाई जाती है. इसका कारण ग्रामीण दैवीय शक्ति के प्रकोप को मनाते हैं. ग्रामीणों की मानें तो 150 साल पहले होली खेलने का साहस करने पर दैवीय प्रकोप के कारण गांव में हैजा की महामारी फैल गई थी. जिसके डर से आज भी तीनों गांव के ग्रामीण होली में विरान रहते हैं.

जिला मुख्यालय से करीब 20 किमी दूर तल्लानागपुर पट्टी में बसे क्वीली, कुरझण और जौंदला गांव की बसागत करीब 372 साल पूर्व की मानी जाती है. यहां के ग्रामीण मानते हैं कि जम्मू-कश्मीर से कुछ पुरोहित परिवार अपने यजमान और काश्तकारों के साथ यहां आकर बस गए थे. ये लोग, तब अपनी ईष्ट देवी मां त्रिपुरा सुंदरी की मूर्ति और पूजन सामग्री को भी साथ लेकर आए. जिसे गांव में स्थापित किया गया. मां त्रिपुरा सुंदरी को वैष्णो देवी की बहन माना जाता है. ग्रामीणों का कहना है कि उनकी कुलदेवी को होली का हुड़दंग और रंग पसंद नहीं है, इसलिए वे सदियों से होली का त्योहार नहीं मनाते हैं.

ग्रामीण बताते हैं कि डेढ़ सौ वर्ष पूर्व इन गांवों में होली खेली गई तो यहां हैजा फैल गया. बीमारी से कई लोगों की मौत हो गई. तब से आज तक गांव में होली नहीं खेली गई है. ग्रामीण बताते हैं कि उनका होली खेलने का बहुत मन करता है, मगर रीति-रिवाज और पंरपराओं को वे ज्यादा मानते हैं. जिसके कारण वे होली नहीं खेलते हैं.

ग्रामीण सुनीता देवी और कमला देवी बताती हैं कि पहले से चली आ रही परम्परा को सभी निभा रहे हैं. यहां यह पर्व वर्षों से नहीं मनाया जा रहा है. अब तो इसकी आदत सी हो गयी है. गांव के नियम कानूनों को तोड़ने की हिम्मत किसी में भी नहीं है.

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Author: nirbhiknazar

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