नई दिल्ली: बेटा तुम एक दिन चीफ जस्टिस बनोगे…बेटे के लिए एक पिता के बिल्कुल यही शब्द थे. सालों पहले उस पिता ने सपना देखा था. सपना… बेटे को चीफ जस्टिस बनाने का. आज वह सपना साकार हो गया. पिता ने अपनी आंखों से वह सपना पूरे होते तो नहीं देखा, मगर बेटे ने उनके सपने को मरने नहीं दिया. कड़ी मेहनत करके बेटे ने पिता के सपने को पूरा कर दिखाया और आज वह चीफ जस्टिस बन गया. जी हां, यह कहानी है भारत के 52वें चीफ जस्टिस बीआर गवई यानी भूषण रामकृष्ण गवई की.
दरअसल, जस्टिस बीआर गवई आज अपने दिवंगत पिता के सपने को पूरा करते हुए देश के 52वें चीफ जस्टिस बन गए. सीजेआई बीआर गवई के पिता रामकृष्ण सूर्यभान गवई एक जाने-माने अम्बेडकरवादी नेता और रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के संस्थापक थे. वह बिहार, केरल और सिक्किम के पूर्व राज्यपाल भी रहे हैं. आरएस गवई खुद भी कभी वकील बनना चाहते थे. मगर समाज सेवा में शामिल होने के चलते वे लॉ स्कूल के दूसरे साल के बाद इसे आगे नहीं बढ़ा सके. हालांकि, अब उनके बेटे बीआर गवई ने सीजेआई बनकर उनके सपने को पूरा कर दिया है.
पिता का सपना, बेटे ने किया पूरा
एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार, सीजेआई बीआर गवई ने एक बार याद करते हुए बताया था कि ‘उन्होंने (पिता ने) मुझसे कहा था कि तुम मेरा सपना पूरा करो.’ बीआर गवई के पिता ने उनसे कहा था, ‘बेटे तुम समाज में मुझसे अधिक योगदान दोगे. तुम एक दिन चीफ जस्टिस बनोगे. मगर मैं इसे देखने के लिए नहीं रहूंगा.’ आज बीआर गवई के पिता की वह बात सच हो गई. बीआर गवई देश के चीफ जस्टिस बन गए. मगर यह देखने के लिए उनके पिता अब इस दुनिया में नहीं हैं. जस्टिस गवई के सुप्रीम कोर्ट में प्रमोशन होने के चार साल पहले ही साल 2015 में आरएस गवई का निधन हो गया.
जस्टिस बीआर गवई को बुधवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने पद की शपथ दिलाई. सीजीआई संजीव खन्ना का कार्यकाल 13 मई को खत्म हो गया था. उनका कार्यकाल सिर्फ सात महीने का है. बीआर गवई देश के दूसरे दलित चीफ जस्टिस हैं. उनसे पहले जस्टिस के. जी. बालाकृष्णन इस पद पर आसीन रहे थे. जस्टिस बालाकृष्णन साल 2007 में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस बने थे. हाल ही में एक अनौपचारिक बातचीत में गवई ने कहा था कि वे देश के पहले बौद्ध चीफ जस्टिस बनने जा रहे हैं.
कौन हैं बीआर गवई
सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट के मुताबिक, सीजेआई बीआर गवई यानी भूषण रामकृष्ण गवई का जन्म 24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में हुआ. उन्होंने 16 मार्च 1985 को वकालत की दुनिया में कदम रखा और शुरुआत में दिवंगत राजा एस. भोंसले (पूर्व महाधिवक्ता और हाईकोर्ट के पूर्व जज) के साथ कार्य किया. साल 1987 से 1990 तक उन्होंने बॉम्बे हाईकोर्ट में स्वतंत्र वकालत की. इसके बाद मुख्य रूप से नागपुर पीठ के समक्ष विभिन्न मामलों की पैरवी करते रहे. संवैधानिक और प्रशासनिक कानून उनके प्रमुख क्षेत्र रहे हैं। वे नागपुर नगर निगम, अमरावती नगर निगम और अमरावती विश्वविद्यालय के स्थायी वकील रहे हैं. 14 नवंबर 2003 को वे बॉम्बे हाईकोर्ट के अतिरिक्त जज बने और 12 नवंबर 2005 को स्थायी जज के रूप में पदोन्नत किए गए. उन्होंने मुंबई की मुख्य पीठ के साथ-साथ नागपुर, औरंगाबाद और पणजी में भी विभिन्न प्रकार के मामलों की अध्यक्षता की. 24 मई 2019 को उन्हें सुप्रीम कोर्ट में प्रमोट किया.
