नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने कोरोना महामारी की दूसरी लहर के बीच सैनिटाइजेशन के लिए देहरादून और हरिद्वार के जिला व परिवार न्यायालयों को दो सप्ताह के लिए अस्थायी रूप से बंद रखने के आदेश दिए हैं। इस अवधि में इन जिलों की अदालती कार्यवाही मई 2020 में जारी अधिसूचना के मुताबिक वर्चुअल माध्यम से चलेगी। हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल धनंजय चतुर्वेदी की ओर से सोमवार को जारी अधिसूचना में कहा गया है कि उक्त अवधि में इन अदालतों में एक तिहाई कर्मचारी मौजूद रहेंगे। ये कर्मचारी 55 वर्ष से कम आयु के होंगे। रजिस्ट्रार जनरल ने दोनों जिलों के जिला न्यायाधीशों से आग्रह किया है कि वे अपने-अपने जिलों के स्वास्थ्य विभाग से जिला न्यायालयों के 45 वर्ष से अधिक उम्र के कर्मचारियों को शीघ्र कोरोना वैक्सीन लगवाने के लिए कहें। इस अधिसूचना में केंद्र और राज्य सरकार के दिशा निर्देशों का पालन करने के लिए भी कहा गया है।

राजस्व गाँव पर 21 अप्रैल तक स्थिति साफ करे सरकार
हाईकोर्ट ने ऊधमसिंह नगर जिले के तीन गांव शिपका, शिपका मिलख और मनोरारथपुर थर्ड को राजस्व गांव नहीं बनाने के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की। कोर्ट ने राज्य सरकार को 21 अप्रैल तक स्थिति साफ करने के निर्देश देते हुए पूछा है कि तीनों गांवों को राजस्व गांव घोषित किया गया है या नहीं, अन्यथा मुख्य सचिव को तलब किया जाएगा।
सोमवार को मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरएस चौहान व न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ में मनोरथपुर थर्ड निवासी मुख्तयार सिंह व पंजाब सिंह की जनहित याचिका पर सुनवाई हुई, जिसमेें कहा गया है कि 1958 में तुमडिय़ा डैम बनने से शिपका, शिपका मिलख व मनोरथ पुर थर्ड गांव की साढ़े तीन सौ हेक्टेयर भूमि चली गई थी। जिसके बाद इन गांवों को रिजर्व फोरेस्ट की भूमि दे दी गई। रिजर्व फॉरेस्ट की भूमि के बाद भी से यह गांव राजस्व गांव नहीं रहे। राजस्व गांव नहीं होने के कारण भूमि न तो बेच सकते हैं न ही खरीद सकते हैं। इनको किसी भी तरह के सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा है। पूर्व में केंद्र सरकार ने इन गांवों को राजस्व गांव बनाने की अनुमति भी दी थी, फिर भी राज्य सरकार ने राजस्व गांव नहीं बनाया। इसके बाद सरकार ने यह परमिशन 2017 में वापस ले ली। याचिकाकर्ताओं ने इन गांवों को राजस्व गांव घोषित करने की मांग की है।