देहरादून: अब सरकार सिलेंडरों का हिसाब रखने के साथ ही इनकी ट्रेकिग की भी योजना बना रही है। इसके तहत इन सिलेंडरों में क्यूआर कोड अथवा फास्टटेग लगाया जाएगा, ताकि इनकी सही जानकारी मिल सके। सिलेंडर ट्रेकिग के जरिये ये भी पता चल सकेगा कि किस अस्पताल, संस्था अथवा व्यक्ति के पास कितने सिलेंडर गए। जो सिलेंडर अभी गायब हैं जब वह रिफिल होने डीलर के पास आएंगे तो उन पर भी क्यूआर कोड अथवा फास्टटेग चस्पा किया जाएगा। इससे इनकी भी जानकारी विभाग के पास रहे। इसके लिए साफ्टवेयर भी तैयार किया जा रहा है।उत्तराखंड में आक्सीजन सिलेंडरों पर नजर रखने के लिए हर सिलेंडर पर क्यूआर कोड या फास्टटेग लगाने की तैयारी चल रही है। इससे हर सिलेंडर के विषय में जानकारी विभाग के पास रहेगी। इसके साथ ही इनकी ट्रेकिग भी की जा सकेगी। इससे यह पता चल सकेगा कि सिलेंडर कहां सप्लाई हुआ है। इस पूरी कवायद का मकसद यह है कि जरूरत के समय इन सिलेंडरों का सही प्रकार से वितरण किया जा सके।
इसलिए पड़ी इसकी ज़रूरत
उत्तराखंड में कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के दौरान आक्सीजन सिलेंडरों की खासी कमी देखने को मिली। हालात इस कदर खराब थे कि बाजार से आक्सीजन सिलेंडर पूरी तरह गायब हो गए। बाजार में सिलेंडरों की मांग ज्यादा थी और उपलब्धता कम। ऐसे में सिलेंडरों की जमाखोरी भी खूब हुई। सरकार ने जब सिलेंडर वितरण की व्यवस्था अपने हाथों में ली तो इनकी गणना कराई। इस पर यह बात सामने आई कि प्रदेश में तकरीबन 25 हजार आक्सीजन सिलेंडर हैं। इनका मोटा-मोटा आंकलन भी हो गया। यह भी पता चला कि इनमें से अभी 2500 सिलेंडर गायब चल रहे हैं। यानी ये सिलेंडर ऐसे हैं, जिनको मरीजों के साथ ही अन्य व्यक्तियों ने अपने पास रख लिया। ये सिलेंडर दोबारा बाजार में नहीं आए। इसके अलावा यह बात भी सामने आई कि कंपनियों के जरिये जो सिलेंडर अस्पताल के लिए निकले, वे कहां-कहां गए इसकी भी पूरी जानकारी नहीं मिली।