देहरादून: उत्तराखंड की राजनीति में वंशवाद का झंडा बुलंद करते हुए, भाजपा-कांग्रेस के कई दिग्गज नेता आगामी विधानसभा चुनाव-2022 में अपने परिजनों को टिकट दिलाने की जुगत में लगे हैं। इनमें से कुछ जहां खुद की जगह बेटे-बेटी को टिकट देने की पैरवी कर रहे हैं वहीं, कुछ खुद सदन में मौजूद रहते हुए अपनों को भी सत्ता के गलियारों से परिचित कराने की तैयारी में हैं। प्रदेश में विधानसभा चुनाव की आचार संहिता लगने में दो माह से कम ही समय शेष है। ऐसे में तमाम पार्टियों में टिकट के दावेदार सामने आने लगे हैं। इसमें कुछ ऐसे भी हैं जो अपनी पारिवारिक विरासत पर हक जता रहे हैं। कुछ मामलों में बुजुर्ग हो चुके नेता स्वेच्छा से रिटायरमेंट की मांग करते हुए, ‘जनसेवा’ की जिम्मेदारी अपने परिजनों को देना चाहते हैं। इससे क्षेत्र में पहले से सक्रिय दूसरे कार्यकर्ताओं में असंतोष पनप रहा है।
वैसे प्रदेश की राजनीति में पारिवारिक कोटा कई तरह से चलन में है। विधानसभा चुनाव में टिकट दिलाने के साथ ही किसी भी विधायक के निधन से रिक्त हुई सीट पर उपचुनाव में भी दिवंगत नेता के परिजनों को ही प्राथमिकता दी जाती है। मौजूदा विधानसभा में ही मुन्नी देवी, चंद्रा पंत व महेश जीना, इसी तरह निर्वाचित होकर सदन में पहुंचे हैं। पिछली विधानसभा में ममता राकेश भी अपने पति की सीट पर निर्वाचित होकर सदन तक पहुंची थीं, हालांकि लगातार दूसरा चुनाव जीतकर ममता ने अपनी सियासी क्षमताओं का परिचय भी दिया। 2017 के विधानसभा चुनाव में तीन दिग्गज अपनी सियासी विरासत, अगली पीढ़ी को सौंपने में कामयाब हुए थे। इसमें पूर्व सीएम बीसी खंडूड़ी ने अपनी बेटी ऋतु को यमकेश्वर व पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने अपने बेटे सौरभ को सितारगंज से विधानसभा पहुंचाया।
पूर्व मंत्री यशपाल आर्य भी अपने बेटे संजीव को भाजपा के टिकट पर विधायक बनाकर, सियासी मैदान में लांच कर चुके हैं। यह दोनों अब कांग्रेस के चिह्न पर मैदान में होंगे। वैसे प्रदेश की सियासत में विरासत की जड़ें पुरानी हैं। नेता विपक्ष प्रीतम सिंह के पिता गुलाब सिंह यूपी के समय से चकराता के विधायक रहे। वहीं, लैंसडौन विधायक दिलीप रावत के पिता भारत सिंह रावत भी यहीं से चार बार विधायक रहे थे।
पारिवारिक प्रत्याशी
अनुकृति रावत गुसाईं: कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत की पुत्रवधू लैंसडाउन से दावेदार है, हरक पूर्व में यहां से विधायक रह चुके हैं ।
अमित कपूर: पूर्व स्पीकर हरबंस कपूर के बेटे इस बार अपने पिता की सीट देहरादून कैंट के दावेदार।
अनुपमा रावत: पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की बेटी अनुपमा इस बार लक्सर से कर रही हैं तैयारी।
कनक धनै: पूर्व मंत्री दिनेश धनै अपने बेटे कनक को ऋषिकेश से सियासी मैदान में लांच करने जा रहे हैं।
विकास भगत: बंशीधर भगत इस बार कालाढुंगी से अपनी जगह बेटे को टिकट दिलाने को प्रयासरत ।
सुमित हृदयेश: स्वर्गीय इंदिरा हृदयेश के निधन से खाली सीट पर उनके बेटे सुमित दावेदार हैं ।
त्रिलोक सिंह चीमा: काशीपुर से विधायक हरभजन सिंह चीमा इस बार बेटे के लिए दांव लगा रहे हैं ।
और भी हैं दावेदार
कुछ नेता इस बार खुलेतौर पर अपनी विरासत अगली पीढ़ी को सौंपने को जोर लगा रहे हैं वहीं, कुछ और भी हैं जो खामोशी से अपने परिजनों के लिए सियासी जमीन तैयार कर रहे हैं। इसमें कैबिनेट मंत्री बिशन सिंह चुफाल की बेटी दीपिका चुफाल, नेता विपक्ष प्रीतम सिंह के बेटे अभिषेक सिंह व कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष रणजीत रावत के बेटे विक्रम रावत प्रमुख रूप से शामिल हैं।