देहरादून: महीनों चले सर्वे और जीतने वाले चेहरों की तलाश की लंबी मशक्कत के बाद आखिरकार भाजपा ने नामांकन प्रक्रिया शुरू होने से ठीक पहले अपने 70 में से 59 प्रत्याशी घोषित कर दिए। इन 59 में से 15 चेहरे नए हैं, लेकिन चौथी विधानसभा के सदस्य रहे जिन विधायकों के टिकट कटे हैं, उनकी संख्या नौ ही है। इनमें भाजपा के आठ और कांग्रेस से भाजपा में आए एक विधायक शामिल हैं। एक सीट के विधायक के निधन के कारण वहां भाजपा ने प्रत्याशी बदला है। तीन सीटों पर पार्टी ने चौथी विधानसभा के सदस्यों के स्वजन को इस बार मैदान में उतारा है, जबकि उसके दो विधायक अब कांग्रेस में हैं। छह टिकट महिलाओं को दिए गए हैं, लेकिन तीन सिटिंग महिला विधायकों के टिकट कटे भी हैं। भाजपा ने टिकट वितरण में जातीय व सामाजिक समीकरणों को साधने की पूरी कोशिश की है।
उत्तराखंड में भाजपा इस बार पिछले चार विधानसभा चुनाव में हर बार सत्ता परिवर्तन के मिथक को तोडऩे का दम तो भर ही रही है, उसने 60 से अधिक सीटें जीतने का लक्ष्य भी रखा है। यही नहीं, उसके समक्ष वर्ष 2017 के चुनाव के अपने ही प्रदर्शन को दोहराने की चुनौती भी है। तब भाजपा ने 70 में से 57 सीटों पर जीत दर्ज कर ऐतिहासिक बहुमत पाया था। एक तरह से भाजपा के लिए उसका अपना ही पिछला प्रदर्शन कसौटी बन गया है। भाजपा छोटा राज्य होने के बावजूद उत्तराखंड को खासा महत्व देती है, इसीलिए चुनावी साल में भाजपा दो-दो बार सरकार में नेतृत्व परिवर्तन जैसा कदम उठाने से भी पीछे नहीं हटी। प्रत्याशी चयन को कई चरणों में चले सर्वे भी इसी रणनीति का हिस्सा रहे।
भाजपा की पहली सूची का आकलन करें तो इसमें पार्टी नेतृत्व द्वारा पिछले कई महीनों से की जा रही मेहनत की झलक तो दिखी ही, त्वरित निर्णय की छाप भी नजर आई। लगभग छह महीने पहले के सर्वे में भाजपा के लगभग डेढ़ से दो दर्जन विधायकों के प्रदर्शन को देखते हुए उनके टिकटों पर तलवार लटक रही थी, लेकिन फिर चुनाव तक आते-आते ऐसे कई विधायकों की सीटों पर उनके मजबूत विकल्प पार्टी को नहीं मिले, तो यह आंकड़ा इसके आधे से भी कम पर ही सिमट गया। गुरुवार को घोषित पहली सूची में 15 सीटों पर नए चेहरों को मौका मिला है। हालांकि ऐसा अलग-अलग कारणों से हुआ और छह सीटों पर हुए बदलाव को टिकट काटे जाने से नहीं जोड़ा जा सकता।
भाजपा ने चौथी विधानसभा में जीती तीन सीटों पर इस बार ऐसे नए प्रत्याशी उतारे हैं, जो इस सीट के विधायक रहे नेताओं के स्वजन ही हैं। देहरादून की कैंट सीट पर सविता कपूर को टिकट दिया गया है, वह इस सीट के विधायक रहे पूर्व विधानसभा अध्यक्ष हरबंस कपूर की पत्नी हैं। कपूर का हाल ही में निधन हुआ था। पार्टी ने इसी तरह हरिद्वार जिले की खानपुर सीट से भाजपा विधायक कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन की जगह उनकी पत्नी रानी देवयानी और उधमसिंह नगर जिले की काशीपुर सीट से विधायक हरभजन सिंह चीमा के बजाय उनके पुत्र त्रिलोक सिंह चीमा को प्रत्याशी बनाया है। उधमसिंह नगर जिले की बाजपुर सीट से पिछली बार यशपाल आर्य व नैनीताल से उनके पुत्र संजीव आर्य भाजपा विधायक चुने गए थे, लेकिन वे अब कांग्रेस में हैं। इन दो सीटों पर भाजपा ने नए चेहरों को मौका दिया।
राज्य की चौथी विधानसभा के नौ सदस्यों के टिकट भाजपा ने इस बार काट दिए। इनमें सबसे दिलचस्प मामला रहा पुरोला सीट से पिछला चुनाव कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में जीते राजकुमार का। राजकुमार हाल ही में कांग्रेस से भाजपा में आए, लेकिन ऐन वक्त पर दुर्गेश्वरलाल टिकट झटकने में सफल रहे। दुर्गेश्वरलाल ने पिछला चुनाव पुरोला सीट से निर्दलीय लड़ा था और 13 हजार से ज्यादा मत हासिल किए थे। उन्होंने गुरुवार को ही भाजपा की सदस्यता ली और चंद घंटे बाद टिकट हासिल कर मैदान मार लिया। भाजपा के जिन नौ सिटिंग विधायकों को इस बार मन मसोसकर रह जाना पड़ा, उनमें अल्मोड़ा से रघुनाथ चौहान का नाम भी शामिल है, जो विधानसभा उपाध्यक्ष थे।
इनके अलावा पूर्व मुख्यमंत्री भुवनचंद्र खंडूडी की पुत्री ऋतु खंडूडी भूषण को यमकेश्वर सीट, पौड़ी सीट से मुकेश कोली, कर्णप्रयाग से सुरेंद्र सिंह नेगी, कपकोट से बलवंत सिंह भौर्याल, द्वाराहाट से महेश नेगी, गंगोलीहाट से मीना गंगोला, थराली से मुन्नी देवी को भाजपा ने इस बार टिकट न देने का निर्णय लिया। उत्तरकाशी जिले की गंगोत्री सीट के विधायक रहे गोपाल रावत के निधन के कारण पार्टी ने नए चेहरे को इस बार अवसर दिया है। कुल मिलाकर भाजपा चौथी विधानसभा की तीन महिला सदस्यों के टिकट काटे और साथ ही पहली सूची में छह महिलाओं को टिकट दिए। जहां तक जातीय व सामाजिक समीकरणों का सवाल है, 59 प्रत्याशियों में 11 अनुसूचित जाति व दो अनुसूचित जनजाति आरक्षित सीटों के प्रत्याशी शामिल हैं। इसके अलावा में लगभग 13 प्रत्याशी ब्राहमण, 21 राजपूत और 10 से 12 वैश्य व पंजाबी समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं।