नई दिल्ली: देश आज अपना 73वां गणतंत्र दिवस मना रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी राष्ट्रीय युद्ध स्मारक पहुंचकर 26 जनवरी कार्यक्रम की शुरुआत की है. सबसे पहले पीएम मोदी राष्ट्रीय युद्ध स्मारक पहुंचे, जहां उन्होंने सशस्त्र बलों के जवानों को श्रद्धांजलि दी. इस दौरान पीएम नरेंद्र मोदी उत्तराखंड की खास टोपी पहने नज़र आए और पीएम मोदी ने मणिपुर का स्टॉल भी पहना हुआ था. पीएम मोदी के उत्तराखंड टोपी पहनने के बाद सोशल मीडिया पर इसकी काफी चर्चा हो रही है और कई लोगों के मन में इस टोपी के बारे में जानने की इच्छा है.
तो ऐसे में जानते हैं कि पीएम मोदी ने जो टोपी पहनी है, उसमें क्या खास है. साथ ही बताते हैं इस टोपी पर जो डिजाइन बनी हुई है, उसका क्या मतलब है. हालांकि, सोशल मीडिया पर कुछ लोग इसे राजनीतिक रंग भी देने की कोशिश कर रहे हैं. तो जानते हैं पीएम मोदी की इस खास टोपी से जुड़ी खास बातें…
पीएम मोदी ने पहनी उत्तराखंड की टोपी
जब आज पीएम मोदी गणतंत्र दिवस की परेड में शामिल होने से पहले राष्ट्रीय युद्ध स्मारक पहुंचे तो उन्होंने उत्तराखंड की टोपी पहने हुए नजर आए. इसके बाद से उत्तराखंड के लोग सोशल मीडिया पर इस पर खुशी जाहिर कर रहे हैं और टोपी को लेकर बात कर रहे हैं. बता दें कि पीएम मोदी ने जो टोपी पहनी है, वो उत्तराखंड की पहाड़ी टोपी है. इस टोपी में ब्रह्मकमल का चिह्न बना है, जो एक फूल है.
इस टोपी में क्या है खास?
उत्तराखंड को खास पहचान दिलाने वाले सोहम आर्ट एवं हेरिटेज सेंटर मसूरी के संचालक समीर शुक्ला ने टीवी9 को बताया, ‘इस टोपी में एक तो ब्रह्मकमल लगा हुआ है, जो उत्तराखंड का राज्य फूल है और शुभ चिह्न है. इसके अलावा इसमें चार रंग की एक पट्टी बनी हुई है, जो जीव, प्रकृति, धरती, आसमान के सामन्जस्य के बारे में बताती है. यह टोपी खास लोकल कारीगरों की ओर से बनाई जाती है. वैसे तो इस टोपी में भूटिया रिवर्स का कपड़ा इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन अगर नहीं मिलता है तो वूलन के लिए ट्वीड का कपड़ा इस्तेमाल होता है और गर्मी के लिए खादी का कपड़ा इस्तेमाल होता है.
समीर शुक्ला अभी क्षेत्रीय कारीगरों की टीम बनाकर ये टोपी बनाने का काम कर रहे हैं, जिससे इस टोपी को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिल रही है. इस टोपी में पहले सिलाई का काम होता है और उसके बाद हाथ से इस पर पट्टी आदि का काम होता है.
किसने बनाई है ये टोपी?
बता दें कि ये टोपी सोहम आर्ट एवं हेरिटेज सेंटर मसूरी की ओर से ही बनाई जाती है. संस्थान के संचालक बताते हैं कि वो क्षेत्रीय कलाकारों के साथ काम कर रहे हैं और उनकी पत्नी कविता शुक्ला भी उनके साथ काम कर रही हैं. कविता शुक्ला महिलाओं की एक टीम बनाकर इस पर जो हाथ से काम होता है, वो करवाती हैं. वे अभी देश और विदेश में अपनी टोपी भेज रहे हैं और लोग इसे पसंद कर रहे हैं.
क्या है ब्रह्मकमल?
ब्रह्मकमल, उत्तराखंड का राष्ट्रीय फूल है और इस फूल की कई धार्मिक मान्यताएं हैं. माना जाता है कि भारत में इस फूल की करीब 61 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिसमें अधिकतर हिमालयी इलाकों में ही पाई जाती हैं. इसका इस्तेमाल कई देशी नुस्खों में किया जाता है और यहां पूजा में इसका इस्तेमाल किया जाता है. साथ ही सर्दी के कपड़ों में भी इस फूल को रखा जाता है और माना जाता है कि इससे सर्दी के कपड़े खराब नहीं होते हैं. ब्रह्मकमल फूल अगस्त के महीने में उगता है और नंदा अष्टमी को लेकर इस फूल का खास महत्व है. ऐसा कहा जाता है कि रामायण में लक्ष्मण के बेहोश होने के बाद इलाज और ठीक होने पर देवताओं ने स्वर्ग से जो फूल बरसाए, वे ब्रह्म कमल ही थे.