देहरादून: BJP में ये भी गज़ब है। एक ही दिन दो कहानी सामने आई। पार्टी की महिला मोर्चा की राष्ट्रीय महामंत्री और छात्र जीवन से ही संघ की विचारधारा वाली दीप्ति रावत का टिकट डोईवाला में खूब नाम उछालने के बाद बाहरी बोल के बेदर्दी से काट डाला और उनकी जगह बृजभूषण गैरोला को उतार दिया। एक घंटे की दूरी पर स्थित टिहरी सीट में इसी दौरान काँग्रेस से बर्खास्त हो के दो दिन पहले आए किशोर उपाध्याय को पार्टी ने अपना प्रत्याशी बना दिया। ऐसा लग रहा कि बीजेपी ने भी काँग्रेस की तरह अपनी विचारधारा और सोच को चुनाव जीतने के लिए गंगा या यमुना में प्रवाहित कर दिया है। सिद्धान्त-आदर्श और विचारधारा की दुहाई देने वाली पार्टी को न जाने काँग्रेस से बेदखल हो रहे लोगों में क्या खूबियाँ और हीरे-पन्ना-नीलम जड़े नजर आ रहे जो उनको सिर माथे पर बिठा रहे। मानो मंदिर में सजाने को आतुर हैं। यशपाल आर्य-संजीव आर्य-हरक सिंह रावत-सरिता आर्य तथा और भी छोटे-बड़े तमाम नाम इनमें शामिल हैं।
काँग्रेस के सिद्धांतों की राजनीति को तो पहले ही कोई भाव नहीं देता या उस पर यकीन करता है। बीजेपी का लेकिन जो नया चेहरा सामने आया, वह हैरान करने वाला है। ऐसा लग रहा कि न तो पार्टी नेतृत्व में दृढ़ता है न ही उसके पास कोई सोच है। बार-बार टिकट उसने भी उसी तरह बदले और काटे, जैसा काँग्रेस ने किया। काँग्रेस के लोगों का वह उसी तरह खैर मकदम कर रही, जैसा बीजेपी से आए लोगों का काँग्रेस कर रही। दोनों दलों के सिर्फ नाम और सिंबल ही अलग है। विचारधारा में कोई फर्क अब नहीं दिखाई दे रहा। BJP कुछ Confuse भी दिख रही। बाहरी क्या होता है और भीतरी किसको कहते हैं, इसकी परिभाषा उसके पास लगता है कि नहीं है। सुविधा और हालात के मुताबिक इसको तैयार किया जा रहा। तमाम नाम ऐसे हैं जो काँग्रेस से आए और अगले दिन ही टिकट ले उड़े। दीप्ति का नाम तकरीबन फाइनल करने के बाद अंतिम पलों में डोईवाला प्रत्याशी के तौर पर महज इसलिए काट दिया कि वह बाहरी है। दीप्ति साल 2007 में बीरोंखाल में अमृता रावत के खिलाफ 25 साल की उम्र में दिलेरी के साथ लड़ते हुए कम अंतर से हारी थीं। DU की महासचिव रह चुकी हैं। परिवार वाले संघ से जुड़े हैं। महिला मोर्चा की दिग्गज ओहदेदार हैं।
उनका नाम दिन भर उछाल के बधाइयाँ दिलवा कर रात में काट के बृजभूषण को दे दिया। ये बात अलग है कि वह भी पुराने भाजपाई हैं। दीप्ति अगर बाहरी हो गईं तो किशोर कैसे घर के हो गए, बीजेपी के पास इसका जवाब नहीं। किशोर को बृजभूषण के साथ ही टिकट दे दिया गया है। पार्टी के पास इसका भी कोई जवाब नहीं कि जो किशोर ताजिंदगी लगभग 40 साल तक काँग्रेस की विचारधारा को सर्वश्रेष्ठ मानते रहे हों। गांधी-नेहरू परिवार के नाम की शपथ लेते रहे हों, वह टिकट मिलते ही कैसे हेगड़ेवार-सावरकर-दीनदयाल उपाध्याय को पूजने लग सकते हैं। कैसे अचानक नमस्ते सदावत्सले दिल से करने लगेंगे!
सरिता आर्य भी काँग्रेस से आईं और हाथों हाथ टिकट ले गईं। काँग्रेस ने भी ऐसी ही लाइन पकड़ी लेकिन उसको ले के सवाल नहीं उठते। वहाँ का पानी और संस्कृति ही ऐसी मानी जाती है। बीजेपी को जरूर चुनाव में शायद गंभीर खामियाजा टिकट बँटवारे में इस किस्म के फैसलों के चलते उठाना पड़े तो हैरानी नहीं होगी। आखिर सिर्फ क्षेत्र में रहना ही टिकट की गारंटी होनी चाहिए तो फिर PM नरेंद्र मोदी, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के बारे में क्या कहेंगे? जो रहते कहीं और लड़ते कहीं हैं। उत्तराखंड में ही सभी बड़े नेता रहते देहरादून-हल्द्वानी में लेकिन लड़ते पहाड़ों से। एक नहीं कई नाम हैं। एक तथ्य ये भी है कि दीप्ति का घर देहरादून के डिफेंस कॉलोनी के बाहर हरक सिंह रावत और सुबोध उनियाल के घर के करीब है। ये सब पड़ोसी हैं। एक ही जगह रह के भी कोई बाहरी और कोई भीतरी है। दीप्ति अपना अधिकांश समय देहरादून और पौड़ी में गुजारती रही हैं। दिल्ली में उसकी ससुराल है। डोईवाला हो या फिर टिहरी, बीजेपी में आंतरिक विरोध खूब है। चुनाव में कमल खिलता है तो ताज्जुब होगा।