देहरादून: उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव को लेकर बीजेपी और कांग्रेस प्रत्याशियों में ही आम तौर पर सीधी टक्कर मानी जा रही है। ऐसे में देहरादून जिले में धर्मपुर विधानसभा की सीट पर बीजेपी और कांग्रेस के बीच मुकाबला रोचक हो गया है।उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव को लेकर बीजेपी और कांग्रेस प्रत्याशियों में ही आम तौर पर सीधी टक्कर मानी जा रही है। ऐसे में देहरादून जिले में धर्मपुर विधानसभा की सीट पर बीजेपी और कांग्रेस के बीच मुकाबला रोचक हो गया है। इस विधानसभा में कांग्रेस की तरफ से तीन बार विधायक रहे दिनेश अग्रवाल ताल ठोक रहे हैं। वहीं, पूर्व मेयर और सिटिंग विधायक विनोद चमोली भाजपा की ओर से दोबारा इसी सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। हालांकि चमोली अब तक कोई चुनाव नहीं हारे हैं, लेकिन इस बार उनकी राह भी आसान नजर नहीं आ रही है। कारण ये है कि बीजेपी के बागी प्रत्याशी बीर सिंह ही उनके लिए मुसीबत बन गए हैं।
बीर सिंह पंवार बिगाड़ रहे समीकरण
बीजेपी में धर्मपुर सीट से टिकट के दावेदारों में लंबी लाइन थी। टिकट न मिलने पर कई नाराज भी हुए और उनमें कई को मना लिया गया। इसके बावजूद बीर सिंह पंवार को बीजेपी नहीं मना पाई और उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में इस सीट से ताल ठोक दी। बीर सिंह टिहरी में रहे और विद्यार्थी परिषद से जुड़े रहे। 97 में राजकीय महाविद्यालय चंबा में वह छात्रसंघ के महासचिव भी रहे। युवा मोर्चा से वह लंबे समय तक जुड़े रहे। हालांकि इस समय वह भाजपा संगठन में किसी पद पर नहीं हैं। बताया जा रहा है कि चमोली से नाराज गढ़वाली वोटों पर उनकी पकड़ मजबूत है।
अभी तक नहीं हारे विनोद चमोली
विनोद चमोली नगर पालिका में सभासद रहे। फिर पालिका अध्यक्ष बने। इसके बाद वह मेयर का चुनाव जीते। फिर धर्मपुर विधानसभा से विधायक का चुनाव जीते। विनोद चमोली आज तक कोई भी चुनाव नहीं हारे और राज्य आंदोलन के दौरान वह सक्रिय रहे। आंदोलन के दौरान दो आंदोलनकारियों पर रासूका लगाई गई थी। इनमें पूर्व विधायक राजेंद्र शाह (दिवंगत) और विनोद चमोली थे।
कांग्रेस के प्रत्याशी
कांग्रेस के प्रत्याशी दिनेश अग्रवाल बार एसोसिएशन देहरादून में सात बार महामंत्री रहे। एक बार उपाध्यक्ष और एक बार अध्यक्ष रहे। विधानसभा के वह छह बार चुनाव लड़े और इनमें तीन चुनाव में उन्हें जीत हासिल हुई। हालांकि वह नगर निगम मेयर का चुनाव भी लड़े और हार गए थे।
धर्मपुर विधानसभा सीट का गणित
धर्मपुर विधानसभा सीट में सबसे ज्यादा पर्वतीय क्षेत्र के मतदाता हैं। इसके बाद यहां 40 हजार मतदाता मुस्लिम हैं। यही कारण है कि पिछले नगर निगम के चुनाव में दिनेश अग्रवाल को सबसे ज्यादा वोट इस विधानसभा सीट के अंतर्गत ही मिले थे। इस विधानसभा सीट से मेयर का चुनाव लड़ने वाले सुनील उनियाल गामा को कम ही वोट मिले। यही नहीं, वर्ष 2009 में जब हरीश रावत ने हरिद्वार लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा तो धर्मपुर विधानसभा सीट से ही उन्हें सबसे ज्यादा मत मिले थे। ऐसे में इस सीट पर कांग्रेस और भाजपा दोनों को ही मेहनत करनी पडे़गी।
कई बार नाराज हो चुके हैं कार्यकर्ता
धर्मपुर विधानसभा हॉट शीट के रूप में भी जानी जा रही है। बीजेपी की ओर से चुनाव पूर्व कराए गए सर्वें के हिसाब से इस विधानसभा को सी ग्रेड के रूप में माना गया था। स्थानीय लोगौं में वर्तमान विधायक विनोद चमोली के खिलाफ काफी नाराजगी भी थी। पिछले काफी समय से कार्यकर्ताऔं और पदाधिकरियौं में इनके प्रति काफी नाराजगी देखी गई है। कई पदाधिकारियों ने चमोली से नाराज होकर बीजेपी से अपना इस्तीफा तक दे दिया था। साथ ही एक बार विनोद चमोली का विधानसभा के कुछ लोगों के समक्ष यह कहना कि–भाड़ में गया तुम्हारा टिकिट, नहीं लड़ना मुझे चुनाव, भी उन पर भारी पड़ सकता है।
कांग्रेस के प्रत्याशी
कांग्रेस के प्रत्याशी दिनेश अग्रवाल बार एसोसिएशन देहरादून में सात बार महामंत्री रहे। एक बार उपाध्यक्ष और एक बार अध्यक्ष रहे। विधानसभा के वह छह बार चुनाव लड़े और इनमें तीन चुनाव में उन्हें जीत हासिल हुई। हालांकि वह नगर निगम मेयर का चुनाव भी लड़े और हार गए थे।
धर्मपुर विधानसभा सीट का गणित
धर्मपुर विधानसभा सीट में सबसे ज्यादा पर्वतीय क्षेत्र के मतदाता हैं। इसके बाद यहां 40 हजार मतदाता मुस्लिम हैं। यही कारण है कि पिछले नगर निगम के चुनाव में दिनेश अग्रवाल को सबसे ज्यादा वोट इस विधानसभा सीट के अंतर्गत ही मिले थे। इस विधानसभा सीट से मेयर का चुनाव लड़ने वाले सुनील उनियाल गामा को कम ही वोट मिले। यही नहीं, वर्ष 2009 में जब हरीश रावत ने हरिद्वार लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा तो धर्मपुर विधानसभा सीट से ही उन्हें सबसे ज्यादा मत मिले थे। ऐसे में पिछले चुनाव में गढ़वाली वोट लेकर विजय हासिल करने वाले चमोली के कुछ वोट बीर सिंह काटते दिख रहे हैं। कांग्रेसी इस सीट से भाजपा के बागी प्रत्याशी के मैदान में उतरने से उत्साहित हैं। ऐसे में इस सीट पर कांग्रेस और भाजपा दोनों को ही मेहनत करनी पडे़गी।