देहरादून: वर्ष 2013 में उत्तराखंड में आई त्रासदी के बाद मौसम विज्ञान केंद्र ने कई नई तकनीक का प्रयोग किया, ताकि भविष्य में ऐसी घटना दोबारा न हो। केंद्र ने पिछले कुछ सालों में भविष्यवाणी की सटीकता बढ़ाने के लिए काफी काम किया है। चंडीगढ़ पहुंचे मौसम विज्ञान केंद्र उत्तर भारत के क्षेत्रीय प्रमुख चरण सिंह ने यह जानकारी दी। चरण सिंह ने बताया कि उत्तराखंड में जो हुआ, उसके बाद मौसम विज्ञान केंद्र ने स्वचालित मौसम केंद्र और रडार नेटवर्क को बढ़ाया है। मुक्तेश्वर में रडार लगाया गया है, जो कार्य कर रहा है। सुरकंडा में रडार लगाने का काम चल रहा है और भूस्खलन में जल्द ही एक नया रडार लगाने की तैयारी की जा रही है।
चरण सिंह ने बताया कि सुरकंडा में जो रडार लगाया जा रहा है, वो करीब तीन महीने में काम करना शुरू कर देगा। इसको चलाने के लिए रक्षा मंत्रालय के साथ एमओयू करने के लिए बातचीत चल रही है। इन रडार से जो डाटा मिलेगा, उसका मुख्यालय में एकीकरण होगा। इस रडार के शुरू होने के बाद उत्तराखंड में अचानक आई बाढ़ और आंधी तूफान के लिए की जाने वाली भविष्यवाणी और सटीक होगी। रडार एक तरह से आंख का काम करते हैं, जो हमेशा देख रहे होंगे कि कहां बादल बन रहे हैं। इससे करीब 10 से 15 फीसदी की सटीकता में बढ़ोतरी होगी।
राज्यों के साथ सहयोग हुआ बेहतर, सैटेलाइट की क्षमता भी बढ़ी: चरण सिंह
चरण सिंह ने कहा कि उत्तराखंड त्रासदी के बाद लोगों को बचाने के लिए मौसम विभाग और आपदा प्रबंधन के बीच सहयोग काफी बेहतर हुआ है। अब विभाग जैसे ही कोई भविष्यवाणी करता है तो राज्यों की विशेष टीम, एनडीआरएफ और वॉलंटियर्स के साथ तुरंत जानकारी साझा की जाती है। ये व्यवस्था काफी बेहतर हुई है। इसके अलावा सैटेलाइट की क्षमता भी लगातार बढ़ रही है। इनसैट-3डीआर (भारतीय मौसम उपग्रह) काफी एडवांस है।
जैसे ही बादल बनता है, 15 मिनट के अंदर उसकी जानकारी मिल जाती है। इससे शॉर्ट रेन फॉरकास्ट और लांग रेन फॉरकास्ट में काफी सटीकता बढ़ी है। भारत के पास अपने तीन मौसम विज्ञान-संबंधी सैटेलाइट पहले से ही हैं। ये कल्पना 1, इनसैट 3ए और इनसैट 3डी हैं। ये सभी पिछले एक दशक से काम कर रहे हैं। इनसैट 3डी को 2013 में लांच किया गया था।