देहरादून: कहते हैं कि विनाश काले विपरीत बुद्धि, यानी जब खराब समय आता है तो व्यक्ति की बुद्धि भी उसे गलत दिशा में ले जाती है. कुछ ऐसा ही इन दोनों उत्तराखंड की राजनीति में कांग्रेस के साथ दिखाई दे रहा है. ऐसा हम नहीं बल्कि पार्टी के भीतर कार्यकर्ताओं की जुबान से सुनाई दे रहा है. दरअसल, यह बात भाजपा के उस मंथन के कारण उठ रही है, जिसमें पार्टी 23 विधानसभा सीटों में मिली हार के कारण जानने के लिए समीक्षा में जुट गई है, जबकि चुनाव में करारी शिकस्त खाने वाली कांग्रेस के पास हार के लिए विस्तृत समीक्षा करने का समय तक नहीं है. उत्तराखंड भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री बीएल संतोष दो दिन के देहरादून दौरे पर हैं. इस दौरान बीएल संतोष मुख्यमंत्री समेत तमाम मंत्रियों और संगठन के पदाधिकारियों से मुलाकात करके आगामी रणनीति और कार्यक्रमों की रूपरेखा तैयार करने वाले हैं लेकिन यहां सबसे ज्यादा गौर करने वाली बात यह है कि बीएल संतोष देहरादून पार्टी मुख्यालय पर उन 23 विधानसभा सीटों में मिली हार को लेकर भी मंथन कर रहे हैं, जहां कांग्रेस बसपा या निर्दलीय प्रत्याशियों ने जीत हासिल की थी.
भाजपा की चुनावी अप्रत्याशित जीत और सरकार बनाने के बावजूद हारी हुई सीटों पर इस तरह मंथन करना वाकई बाकी दलों के लिए एक बड़ा संदेश है और शायद इसीलिए कांग्रेस में भाजपा की इस तरह की तैयारियों को लेकर दबी जुबान में पार्टी हाईकमान पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं. बता दें, 10 मार्च को आय विधानसभा चुनाव के परिणामों के बाद तकरीबन 21 और 22 मार्च को प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव और अविनाश पांडे की तरफ से पार्टी के प्रत्याशियों से बात की गई थी. इस दौरान उन्होंने प्रत्याशियों से चुनाव के अनुभवों को लेकर बातें साझा की. लेकिन ना तो इस बैठक में हार की विस्तृत समीक्षा बड़े स्तर पर की गई और ना ही इसके बाद कभी कांग्रेस नेताओं ने खुद की करारी हार पर चिंतन करने की जरूरत समझी.
चुनाव में इतना बड़ा झटका लगने के बाद हार की समीक्षा करने के बजाए कांग्रेस के बड़े नेता एक दूसरे पर हार का ठीकरा फोड़ते हुए दिखाई दिए. हैरत की बात यह है कि पार्टी हाईकमान की तरफ से अब तक किसी बड़े नेता को उत्तराखंड भेजकर न तो विवाद सुलझाने की कोशिश की गई और ना ही हार के बाद आगे के कार्यक्रमों या हार के कारणों पर बूथ या जिला स्तर पर कोई मंथन किया गया.
जाहिर है कि कांग्रेस की ऐसी कार्यप्रणाली पार्टी की प्रदेश में हार को लेकर निश्चिनता को बयां करती है. बस इसी बात से पार्टी के कार्यकर्ता और कुछ बड़े नेता भी फिक्रमंद दिखाई देते हैं. हालांकि, इस मामले में फिलहाल पार्टी हाईकमान पर सवाल खड़े करने की हिम्मत करता हुआ कोई नहीं दिखाई दे रहा है.