देहरादून। मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण (एमडीडीए) के उपाध्यक्ष ब्रजेश संत इस संस्थान की पुरानी छवि तोड़ने की कोशिश में हैं। उन्होंने पहला प्रहार आर्किटेक्ट, जूनियर इंजीनियरों और दफ्तर के बाबुओं के बड़े काकस पर किया है। गैर जरूरी प्रवेश के साथ ही जेई और बाबुओं से मुलाकात को प्रतिबंधित कर दिया गया है। आर्किटेक्ट अब केवल उपाध्यक्ष और सचिव से ही मिल सकेंगे। लंबे समय से एमडीडीए की कार्यशैली चर्चा में रहती रही है। यहां कई दलाल और आर्किटेक्ट आम लोगों की समस्याएं निपटाने की बजाए जेई और बाबुओं से मिलकर उलझाने में ही लगे रहते थे। मानचित्र स्वीकृत होने और अतिक्रमण के नाम पर लोगों के आर्थिक शोषण की बातें भी चर्चाओं में रहती थी। मानचित्र पास कराना तो एक जंग जीतने जैसा काम था।
धामी सरकार ने आईएएस अफसर ब्रजेश संत को इसका उपाध्यक्ष बनाया। उन्होंने यहां की कार्यशैली समझी तो भौचक्के रह गए। संत ने इस संस्थान की छवि सुधार कर आम लोगों को राहत दिलाने का फैसला किया। उन्होंने सबसे पहले यह आदेश दिया कि ऑनलाइन जमा होने के एक महीने के अंदर नक्शा स्वीकृत किया जाएगा। यह व्यवस्था भी बनाई कि आवेदक लॉगइन करके अपने नक्शे की पूरी जानकारी ले सकता है।
उपाध्यक्ष संत ने देखा कि दफ्तर में तमाम आर्किटेक्ट आते हैं और जूनियर इंजीनियरों के साथ ही बाबुओं के साथ घंटों बैठे रहते हैं। आशंका इस बात की थी कि फाइलों को देखकर डील की जाती है। संत ने अब आदेश कर दिया है कि कोई भी आर्किटेक्ट अगर किसी काम से दफ्तर आता है तो उसे केवल उपाध्यक्ष या सचिव से ही बात करने की अनुमति होगी। दफ्तर में उसकी पहुंच न तो फाइलों तक होगी और न ही जेई या बाबुओं तक। सभी को दफ्तर में प्रवेश के वक्त अनिवार्य रूप से एंट्री करानी होगी और आने व जाने का समय दर्ज करना होगा।
उपाध्यक्ष संत कहते हैं कि इस व्यवस्था के नतीजे एक पखवाड़े में ही दिखने लगे हैं। आम लोगों की शिकायतें एकदम से कम हो गईं हैं। दफ्तर में बाबुओं और जेई के साथ आर्किटेक्ट की बैठकी भी बंद हो गई है। संत ने कहा कि सरकार आम लोगों के हित में काम कर रही है। ऐसे में अफसरों को भी इसी दिशा में काम करना होगा।