मौ0 तारिक अंसारी
(न्यूज़ एडिटर निर्भीक नज़र)
देहारादून: उत्तराखंड को अस्तित्व मे आए 20 वर्ष पूर्ण हो चुके हैं इन बीस वर्षों मे कई सरकारें आईं और गईं लेकिन पूर्ण रूप से गैरसेण को राजधानी बनाने का संघर्ष आज तक उत्तराखंड के लोग कर रहे हैं। हर सरकार ने उत्तराखंड के लोगों से राजधानी का वादा तो किया लेकिन कोई भी सरकार से पूर्ण रूप से अमली जामा नहीं पहना सकी। हाँ उत्तराखंड के लोगों से राजधानी के नाम पर कई राजनीतिक पार्टियों ने वोट जरूर बांटोरे। और वोट बटोर कर राजधानी बनाने का वादा सरकारें भूल बैठीं शायद यही कारण है की उत्तराखंड मे अब तक किसी भी राजनीतिक पार्टी की सरकार उत्तराखंड मे रिपीट नहीं हो सकी। यानि उत्तराखंड के लोग एक बार किसी राजनैतिक दल को सरकार बनाने का मौका देकर अगले चुनाव मे उसे नकार देते हैं फिर दूसरी पार्टी को सरकार बनाने का मौका देते हैं। लेकिन दशकों बाद उत्तराखंड के लोगों को त्रिवेन्द्र सरकार से थोड़ी उम्मीद जागने लगी है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने पिछले साल चार मार्च को गैरसैंण को राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित किया। इसके बाद ग्रीष्मकालीन राजधानी की अधिसूचना जारी हुई और सरकार ने गैरसैंण में अवस्थापना सुविधाओं के विकास के दिशा में तेजी से कदम उठाने शुरू किए हैं।
ग्रीष्मकालीन राजधानी क्षेत्र में चमोली, अल्मोड़ा व पौड़ी जिलों के करीब 45 किलोमीटर के क्षेत्र को शामिल कर यहां के विकास का खाका खींचा जा रहा है। उत्तराखंड की जनभावनाओं का केंद्र रहे गैरसैंण को राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित करने के बाद अब सरकार ने इसे शीर्ष प्राथमिकता में ले लिया है। ग्रीष्मकालीन राजधानी के औचित्य को सही साबित करने के मद्देनजर आने वाले दिनों में गर्मियों में दो माह सरकार गैरसैंण से चलेगी। इसकी शुरुआत इसी वर्ष से करने की तैयारी है। इसे लेकर मंथन चल रहा है। सरकार के प्रवक्ता एवं कैबिनेट मंत्री मदन कौशिक के अनुसार गैरसैंण सरकार की प्राथमिकता है। जनभावनाओं के आधार पर ग्रीष्मकालीन राजधानी को धरातल पर उतारने को पूरी गंभीरता के साथ कदम उठाए जा रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक सरकार के स्तर पर यह मंथन चल रहा है कि हर साल गर्मियों में कम से कम दो माह सरकार गैरसैंण में बैठे और यहीं से कामकाज संचालित किया जाए। तैयारी ये भी है कि इसी साल से यह व्यवस्था अमल में आ जाए। इस बात का भी परीक्षण चल रहा है कि वर्तमान में यहां कितने दफ्तर आ सकते हैं।
जानिए गैरसेण पर कितनी मेहरबान हुई सरकार
उत्तराखंड में 2022 के विधानसभा चुनावों की बिसात अभी से बिछने लगी है। इस बार बीजेपी ने 57 हजार 400 करोड़ रुपये का बजट पेश किया, बजट मे गैरसेण को प्रमुखता से ध्यान मे रखते हुए गैरसेण के लिए कई घोषणाएँ हुई। गुरुवार को गैरसैंण विधानसभा में आहूत सत्र में मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने उत्तराखंड के वित्तीय वर्ष 2021-22 का बजट पेश किया। सीएम ने कहा कि गैरसैंण को कमिश्नरी बनाया जाएगा। इसमें गढ़वाल क्षेत्र के जनपद चमोली, रुद्रप्रयाग और कुमाऊं क्षेत्र के अल्मोड़ा और बागेश्वर जनपद को शामिल किया जाएगा। गैरसैंण में कमिश्नर के साथ डीआईजी भी नियुक्त किये जाएंगे। सीएम ने कहा कि ग्रीष्मकालीन राजधानी क्षेत्र के नियोजित विकास के लिए मास्टर प्लान तैयार होगा। एक महीने के अंदर इसका टेंडर हो जाएगा। इसके साथ ही स्थानीय उत्पादों को ध्यान में रखते हुए गैरसैंण में खाद्य प्रस्संकरण इकाई की स्थापना की जाएगी। सीएम ने यह भी कहा कि ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण में 20 हजार फलदार पेड़ लगाए जागएंगे। इसी तरह नव सृजित छह नगर पंचायतों में बुनियादी ढांचे के विकास को एक-एक करोड़ रुपये देने की घोषणा सीएम ने की। एक साल पहले गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी और आज इसे कमिश्नरी का दर्जा देकर सीएम ने कई सियासी समीकरण साधे हैं। आने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा इसका लाभ लेने का प्रयास जरूर करेगी। सीएम का मास्टर स्ट्रोक कांग्रेस की रणनीति पर भारी पड़ने वाला है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने संवाददाता सम्मेलन में कहा गैरसैंण राजधानी क्षेत्र के विकास का पूरा खाका तैयार है। इसके विकास के लिए 350 करोड़ रुपये स्वीकृत किए गए हैं।
लेकिन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की गैरसैंण कमिश्नरी की घोषणा कांग्रेस को रास नहीं आ रही है। कांग्रेस ने सदन के भीतर और बाहर इसका विरोध किया। कांग्रेस का कहना है कि यह घोषणा लोकलुभावन और राजनीतिक लाभ लेने के इरादे से की गई है। गैरसैंण को कमिश्नरी बनाने से कई विसगतियां पैदा होंगी। इससे बेहतर तो यह होता कि सरकार गैरसैंण को जिला बनाती। अगर वाकई मे कांग्रेस की बात सच है यानि सरकार गैरसेण को राजनीतिक लाभ लेने के लिए चमका रही है तो एक बार फिर उत्तराखंड की भोलीभाली जनता राजनीति के चंगुल मे फँसकर रह जाएगी। और अगर वाकई मौजूदा सरकार गैरसेण को लेकर सिरियस है तो ये सरकार का एक स्वागत योग्य कदम है। क्यूंकी जो सरकारें पिछले 20 वर्षो से उत्तराखंड मे नहीं कर पाईं त्रिवेन्द्र सरकार ने उसे 2 वर्षों मे पूरा कर दिया।